नई दिल्ली: गर्भाशय कैंसर ऐसी बीमारी है जो किसी भी महिला को किसी भी उम्र में हो सकती है. इस बीमारी की समय पर पहचान हो जाए और सही इलाज हो, तो इससे मुक्ति पाई जा सकती है.



जेपी हॉस्पिटल की सीनियर चिकित्सक डॉ. रेणु जैन का कहना है कि यह बीमारी किसी खास उम्र में नहीं होती, बल्कि कभी भी हो सकती है. समय-समय पर जांच कराते रहने से इस बीमारी से बचा जा सकता है. देखा गया है कि गर्भाशय कैंसर के लक्षणों को महिलाएं अक्सर नजरअंदाज करती रहती हैं.

डॉ. रेणु ने बताया कि जेपी हॉस्पिटल में एक साल की बच्ची इलाज के लिए आई थी. जांच से पता चला कि उसे गर्भाशय कैंसर है. उसका इलाज कर उसकी जान बचाई गई. इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि इस बीमारी का उम्र से कोई लेना-देना नहीं है, जागरूकता में कमी इस बीमारी के गंभीर होने का एक महत्वपूर्ण कारण है.

चिकित्सकीय आंकड़ों के अनुसार, प्रत्येक 70 महिलाओं में से एक को गर्भाशय कैंसर होता है. इस बीमारी के होने का प्रमुख कारण समय पर बीमारी का पता न चल पाना और जानकारी होने के बाद भी समय पर बीमारी का सही इलाज न हो पाना है.

डॉ. रेणु ने कहा, "सबसे अहम बात यह है कि जब तक यह बीमारी गंभीर नहीं हो जाती, तब तक यह पकड़ में नहीं आती."

उन्होंने कहा, "प्रत्येक पांच महिलाओं में से एक महिला को गर्भाशय कैंसर आनुवांशिक रूप से मिलता है. बीआरसीए1 और बीआरसीए2 जीन में इस बीमारी के होने की संभावना अधिक होती है. यह ब्रेस्ट कैंसर की संभावना को भी बढ़ाता है."

स्त्री रोग विशेषज्ञ ने कहा कि अगर किसी महिला के नजदीकी रिश्तेदार को पेट, स्तन या गर्भाशय कैंसर पूर्व में हो चुका है, तो परिवार की अन्य महिला सदस्यों में इस बीमारी के होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है. ऐसी अवस्था में महिलाओं को बीमारी के लक्षण सामने आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क कर जांच करानी चाहिए.

गर्भाशय कैंसर के लक्षण :




  • पेट में सूजन

  • श्रोणि या पेट में दर्द

  • खाने-पीने में कठिनाई, भूख कम लगना

  • तेजी से पेशाब आना या बार-बार पेशाब आना


डॉ. रेणु के मुताबिक, इस लक्षणों के अलावा अत्यधिक थकान, अपच, चिड़चिड़ापन, पेट की खराबी, पीठ के निचले हिस्से और पैरों में दर्द, कब्ज या दस्त, वजन घटना, मासिक धर्म में अनियमितता और सांस की तकलीफ भी गर्भाशय कैंसर के लक्षण हैं. अगर ये लक्षण दो हफ्ते से अधिक समय तक रहें तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं.

आंकड़े यह भी बताते हैं कि 75 फीसदी महिलाएं बीमारी के बढ़ जाने के बाद ही इसकी जांच कराती हैं और केवल 19 फीसदी महिलाओं को इस बीमारी का पता पहले चल पाता है. जिन महिलाओं को इस बीमारी का पता गंभीर अवस्था हो जाने के बाद लगता है, उनमें से अधिकांश महिलाओं की मौत पांच साल की अवधि के बीच हो जाती है.