ADHD in Children : बच्चों का IQ (Intelligence Quotient) ज्यादा होना अच्छा होता है लेकिन अगर यह हद से ज्यादा है तो उनकी सेहत के लिए खतरनाक भी हो सकता है. ऐसे बच्चों को ADHD (अटेंशन डिफिशिएंसी हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) का खतरा ज्यादा रहता है. दिनभर धमा-चौकड़ी मचाने वाले, भागदौड़ करने वाले और तेज बुद्धि वाले बच्चों में ये न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर ज्यादा हो सकता है.


यह डिसऑर्डर बच्चे के मानसिक विकास होने के दौरान मतलब 3 से 12 साल की उम्र में होता है. जर्नल ऑफ ग्लोबल हेल्थ में पब्लिश एक स्टडी के अनुसार, पूरी दुनिया में 5-14 साल के करीब 13 करोड़ बच्चे और किशोर इस बीमारी से जूझ रहे हैं. भारत में 5-8% स्कूली बच्चे इसके शिकार हैं. ऐसे में उनकी केयर को लेकर पैरेंट्स को सावधान रहना चाहिए.


ADHD में क्या दिक्कतें आती हैं


एडीएचडी आमतौर पर बच्चों के विकास के दौरान होता है, जो ज्यादा खतरनाक हो सकता है. इसका खामियाजा उन्हें पूरी उम्र भुगतना पड़ता है. इसमें बच्चे अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं. उन्हें एक जगह टिककर बैठने में परेशानी होती है और दिनभर खुरापात सूझता रहता है. बच्चों को बदमाशी करने के लिए ADHD मजबूर करता रहता है. यह उसकी मेंटेलिटी बनती जाती है. ऐसे बच्चों का आईक्यू भी काफी तेज हो सकता है.


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हाई IQ और ADHD का कनेक्शन


शोधकर्ताओं ने पाया है कि हाई आईक्यू वाले बच्चों में एडीएचडी की समस्या अधिक देखी जाती है. इसके कई कारण हो सकते हैं. दरअसल, जिन बच्चों का आईक्यू ज्यादा होता है, उनमें एनर्जी भी ज्यादा होती है, वे एक जगह शांति से नहीं बैठ पाते हैं. ऐसे बच्चे कई चीजों में इंट्रेस्ट रखते हैं और उन्हें एक ही चीज पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है. इनमें बाकी बच्चों की तुलना में ज्यादा क्षमता होती है. ऐसे बच्चों को सामाजिक रिश्ते बनाने में परेशानी होती है.


ADHD के लक्षण क्या हैं


दिन में भी सपने देखना


चीजों का खोना


बातें याद न रख पाना


रिस्की काम न कर पाना


बातूनी होना


चिड़चिड़ापन


बहुत ज्यादा चोट लगना


ADHD होने का कारण


दिमाग के आगे का हिस्सा प्री फ्रंटल लोब है, जो प्लानिंग,  अटेंशन, फैसले लेने और जिम्मेदारीलेने की क्षमता को तय करता है. ADHD से पीड़ित बच्चों के इस हिस्से का विकास या तो अधूरा रह जाता है या देर से होता है. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, एडीएचडी होने के पीछे का कारण न्यूरॉन्स का सही तरह काम न करना है. जिनका काम दिमाग अहसास, संवेदना या मैसेज पहुंचाना होता है. ADHD में न्यूरॉन्स में रिसेप्टर्स की काफी कमी देखने को मिलती है. जिन बच्चों के दिमाग के ग्रे मैटर की साइड छोटी होती है, उन्हें इसका खतरा ज्यादा रहता है. ये समस्या जेनेटिक भी हो सकती है.


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बच्चों को ADHD से कैसे बचाएं


कई बार एडीएचडी की कंडीशन गंभीर होने पर काउंसिलिंग या मेडिकल ट्रीटमेंट की भी जरूरत पड़ सकती है लेकिन अगर इस पर पैरेंट्स शुरुआत में ही ध्यान दें तो सही समय पर इलाज कर सकते हैं. कैम्ब्रिज की नई रिसर्च के अनुसार, इन बच्चों का दिमाग बड़े होकर कैसा होगा, इसका पता बचपन में ही चल जाता है. ऐसे में माता-पिता को अहम भूमिका निभानी चाहिए.


उनका हेल्दी रिलेशनशिप बच्चों की मेंटल हेल्थ को बेहतर बना सकता है. इसके साथ ही सही दिशा में सोना, उम्र के हिसाब से फिजिकल एक्टिविटीज, सही डाइट और स्क्रीन टाइम को कम कर बच्चों को इस तरह के डिसऑर्डर से बचाया जा सकता है.



Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.



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