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पीडियाट्रिक अस्थमा से बच्चों को इस तरह बचाएं, सही जानकारी से सबसे बड़ा उपाय
भारत में ही करीब 7.9 प्रतिशत बच्चे पीडियाट्रिक अस्थमा के शिकार हैं. माता-पिता की देखभाल इस बीमारी को कंट्रोल करने में काफी मददगार माना जाता है. इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि वे इसकी पूरी जानकारी रखें
Pediatric Asthma : पीडियाट्रिक अस्थमा बच्चों की सबसे आम क्रोनिक बीमारियों में से एक है. यह सांस से जुड़ी बीमारी है, जिसमें बच्चों के लंग्स में सांस की नलियों में सूजन आ जाती है और संकरी होने की वजह से हवा पास नहीं कर पाती. हमारे देश में ही करीब 7.9 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी के शिकार हैं. माता-पिता की देखभाल पीडियाट्रिक अस्थमा को कंट्रोल करने में काफी मददगार माना जाता है. इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि माता-पिता इस अस्थमा (Pediatric Asthma) को पूरी तरह समझें, ताकि बच्चे को हेल्दी बना पाएं. आइए जानते हैं इस बीमारी से जुड़ी फुल डिटेल्स...
बच्चों में पीडियाट्रिक अस्थमा का कारण और इलाज
1. इस बीमारी की जानकारी कम होना
अस्थमा जैसी सांस की बीमारियों को जितना ज्यादा जान पाएंगे, उतना ही उससे बच्चे को बचा सकते हैं. सही समय पर इस बीमारी को पहचानकर इसका इलाज काफी संभव है. कुछ लोग अस्थमा को लेकर कंफ्यूज भी रहते हैं. इसे दमा का रोग भी मान लेते हैं. इसलिए इस बीमारी क ठीक तरह से जानकार बच्चे को इससे बचा सकते हैं. क्योंकि अस्थमा पीड़ित करीब 80 प्रतिशत बच्चों में इसके लक्षण 6 साल तक की उम्र में ही नजर आ जाते हैं.
2. अस्थमा से जुड़ी इन बातों का भी ध्यान रखें
माता-पिता और देखभाल करने वालों में अस्थमा की जानकारी का अभाव देखने को मिलता है. इसके इलाज और नियंत्रण को लेकर पहले से ही कई धारणाएं चचली आ रही हैं. कुछ लोग अस्थमा को मिथ से भी जोड़ लेते हैं. इन धारणाओं में ये भी माना जाता है कि इलाज से बच्चों का विकास थम जाता है, उनका वजन बढ़ने लगता है. सामान्य जीवन में परेशानियां आती हैं. माता-पिता इसी भ्रांतियों की वजह से इस बीमारी को छिपाते हैं और इलाज नहीं करा पाते. जब तक डॉक्टर के पास वे पहुंचते हैं, यह बीमारी गंभीर हो चुकी होती है. इसलिए इस तरह की भ्रांतियों से बचकर रहें और तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचे.
3. अस्थमा की पहचान में मुश्किल
बच्चों में अस्थमा की पहचान काफी मुश्किल हो सकती है. दरअसल, बच्चों में होने वाली कई समस्याएं एक जैसी ही होती हैं. इनमें राईनिटिस, साईनुसिटिस, एसिड रिफ्लक्स या गैस्ट्रोएसोफेजियल रिफ्लक्स, ब्रोंकाईटिस और रेस्पिरेटरी सिंसाईटल वायरस जैसी बीमारियां हैं. अस्थमा की पहचान के लिए कुछ टेस्ट कराए जाते हैं. जिनमें लंग फंक्शन टेस्ट, पीक एक्सपायरेटरी फ्लो और स्पाईरोमीट्री टेस्ट है. इनसे पता चलता है कि बच्चों की सांस की नलली में हवा कहीं रूक तो नहीं रही है. सांस की नली में सूजन का पता लगाने के लिए फेनो टेस्ट किया जाता है. स्किन प्रिक टेस्टिंग या ब्लड टेस्टिंग और एलर्जन टेस्ट भी डॉक्टर करते हैं. जिनसे अस्थमा के लक्षणों का पता चलता है.
बच्चों में होने वाली अस्थमा को कंट्रोल कैसे करें
माता-पिता और अभिभावक बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनके लिए मेडिकल ट्रीटमेंट संबंधी फैसले लेते हैं और उनका खुद भी ख्याल रखते हैं. इसलिए उन्हें इस बीमारी से जुड़ी हर जानकारी का सही-सही पता होना जरूर होता है. ताकि सही समय पर सही फैसले ले सकें. इससे बच्चों में अस्थमा का बेहतर तरीके से इलाज हो सकता है.
पीडियाट्रिक अस्थमा को लेकर ध्यान दें
भारत में पीडियाट्रिक अस्थमा एक गंभीर समस्या है. इस पर तुरंत ध्यान देकर कंट्रोल किया जा सकता है. इसके लिए व्यापक तौर पर जन-जागरूकता फैलाने की जरूरत है. हर किसी को आगे आना पड़ेगा, ताकि अस्थमा पीड़ित बच्चों को सेहतमंद जीवन दे सकें.
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