आज पैदा हुए लोगों को अपने जीवनकाल में बुजुर्गों के मुकाबले ज्यादा जलवायु आपदाओं का सामना करना होगा. ये चेतावनी इस हफ्ते साइंस पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च से मिली है. रिसर्च के मुताबिक, 2020 में जन्मे बच्चे औसत 30 बेहद गर्म लहरों का अपने जीवनकाल में सहन करेंगे, भले ही देश भविष्य के कार्बन उत्सर्जन में कटौती का अपने वर्तमान वादों को पूरा कर लें.


वर्तमान की नस्ल को जलवायु संकट का ज्यादा करना होगा सामना


1960 में किसी की पैदाइश के मुकाबले गर्म लहर का ये सात गुना अधिक आंकड़ा है. आज के 60 वर्षीय शख्स के मुकाबले वर्तमान समय के बच्चे फसल क्षति, तीन गुना बाढ़ और जंगल की आग के अलावा सूखे का दोगुना अनुभव करेंगे. शोधकर्ताओं का कहना है कि नतीजे युवा नस्ल की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरे को उजागर करते हैं और उनके भविष्य को बचाने के लिए भारी उत्सर्जन में कमी की मांग करते हैं. उन्होंने बताया कि आज 40 साल से कम उम्र के लोग 'अभूतपूर्व' जीवन जीने जैसे लहर, सूखा, बाढ़ और फसल की क्षति के लिए तैयार हैं.


कार्बन उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य हासिल करने के बाद भी खतरा


एक अन्य शोधकर्ता ने बताया, "अच्छी खबर ये है कि हम जलवायु का अधिकांश बोझ अपने बच्चों के कंधे से उठा सकते हैं अगर जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर हम ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस कम कर पाते हैं." वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विकासशील देशों में सबसे नाटकीय होने की उम्मीद है. मिसाल के तौर पर उप-सहारा अफ्रीका में रहनेवाले शिशुओं को 54 गुना जितना गर्मी की लहरों का अनुभव करने की उम्मीद है. युवा लोगों पर जलवायु संकट की मार पड़ रही है लेकिन कोई फैसला करने की स्थिति में नहीं हैं. हालांकि, उन लोगोों को नतीजे नहीं भुगतने होंगे जो परिवर्त कर सकते हैं. रिसर्च के मुताबिक देशों को अभी भी आनेवाले बदलावों को अपनाने का मौका है. विश्लेषण में खुलासा हुआ कि सिर्फ 40 साल से नीचे के लोग उत्सर्जन में किए गए कमी के विकल्पों का नतीजा देखने के लिए जीवित रहेंगे. उसके कारण उम्र दराज लोग दुनिया में उन विकल्पों का स्पष्ट प्रभाव होने से पहले मर चुके होंगे.


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