वाशिंगटन: भारत के ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाले परंपरागत चूल्हे अनुमान से कहीं अधिक स्तर पर सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन करते हैं. इसका देश के पर्यावरण और लोगों की सेहत पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. एक शोध में यह तथ्य सामने आया है.
यह शोध एटमॉस्फेरिक केमेस्ट्री ऐंड फिजिक्स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ.
दिसंबर 2015 में शोधकर्ताओं ने मध्य भारत के रायपुर शहर में 20 दिन तक कई परीक्षण किए. इस शहर में तीन चौथाई से अधिक परिवार भोजन पकाने के लिए चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं.
शोधकर्ताओं में रायपुर स्थित पंडित रविशंकर शुक्ला यूनिवर्सिटी और पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के वैज्ञानिक भी शामिल हैं. उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों से लाए विस्तृत किस्म के जैव ईंधन जलाए और भोजन पकाया.
अत्याधुनिक उपकरणों से उत्सर्जन स्तर मापा गया.
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर राजन चक्रवर्ती ने कहा कि हमारे प्रोजेक्ट में यह निष्कर्ष निकला कि भारत में चूल्हों से निकलने वाले सूक्ष्म कणों को लेकर पहले का आकलन कम था.
शोधकर्ताओं ने कहा कि परिणाम चौंकाने वाले थे. उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में तो उत्सर्जन स्तर प्रयोगशालाओं में पहले निकाले गए निष्कर्षों के मुकाबले दोगुने से भी अधिक था.
चक्रवर्ती ने कहा, ‘परंपरागत चूल्हा भारत में प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है. हमने पाया कि यह वास्तव में एक बड़ी समस्या है.’
ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.