Corona Symptoms: कोरोना वायरस ने देश और दुनिया की रहन सहन में बहुत अधिक बदलाव कर दिया है. हर किसी व्यक्ति की लाइफ स्टाइल इस वायरस से प्रभावित हुई है. वायरस का असर केवल हयूमन लंग्स तक ही नहीं रहा. इसका असर बॉडी के कई आर्गन पर देखने को मिला है. विशेषतौर पर दिल और दिमाग भी कोविड का ​नेगेटिव इफेक्ट देखने को मिला है. कोरोना के ब्रेन पर ​नेगेटिव इफेक्ट को लेकर एक स्टडी की गई है. स्टडी में ब्रेन पर कई प्रभाव देखने को मिले हैं. 


युवाओं में ​पार्किंसंस रोग की देखी बढ़ोत्तरी


वर्ष 2016 में देश में ​पार्किंसंस के मरीजों की संख्या करीब 6 लाख थी. वो अब तेजी से बढ़ी है. अध्ययनकर्ताओं की रिसर्च में सामने आया है कि वर्ष 2019 में कोरोना की दस्तक देने के बाद ​पार्किंसंस रोगियों की संख्या अधिक हुई है. विशेष बात यह है कि कोरोना के बाद से युवा इस रोग की चपेट में अधिक आया है. 


कोरोना महामारी के बाद 2 प्रतिशत बढ़े मामले


शोधकर्ताओं ने बताया कि कोविड ने ब्रेन के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को सीधे तौर पर प्रभावित किया है. महामारी के बाद ​पार्किंसंस के मामलों में 2 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी देखी गई है. यह वृद्धि बहुत अधिक है. ऑस्ट्रेलिया स्थित क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अध्ययन में सामने आया कि सार्स-सीओवी-2 वायरस ने ब्रेन में उसी तरह का इंफ्लामेटरी रिस्पांस बनाया, जैसा कि पार्किंसंस रोग होने पर होता है. 


इस तरह बढ़ी बीमारी


शोधकर्ताओं ने रिसर्च कर देखा कि कोरोना वायरस ब्रेन में माइक्रोग्लिया नामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं को इफेक्ट करता है. ये कोशिकाएं ​पार्किंसंस रोग होने पर एक्टिव होती है. वहीं कोरोना होने पर भी ये कोशिकाएं एक्टिव हो गईं और इंफ्लामेटरी कैमिकल्स का उत्पादन किया. इससे ​पार्किंसंस समस्या गंभीर हो गई. अध्ययन के लेखक, प्रोफेसर ट्रेंट वुड्रूफ़ ने बताया कि रिसर्च में सामने आया कि कुछ पेशेंट ये कोशिकाएं इंफ्लामेटरी समस्याओं की वजह बन रही थी. इस तरह की परेशानी पार्किंसंस और अल्जाइमर जैसे पेशेंट में देखने को मिलती है. 


अभी और स्टडी जरूरी


हालांकि शोधकर्ताओं ने ये भी कहा है कि कोरोना से ​पार्किंसंस होता है या नहीं. इसको लेकर अभी और गहन रिसर्च किए जाने की जरूरी है. तभी स्थिति क्लियर होगी. ये नहीं कहा जा सकता है कि सभी कोविड रोगियों को ​पार्किंसंस हो सकता है. 


पार्किंसंस के लक्षण और बचाव


​पार्किंसंस होने पर न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर देखने को मिलता है. इसमें भ्रम की स्थिति होना, मैमोरी कमजोरी होना, सही ढंग से खड़े न हो पाना, सामान्य कामकाज न कर पाना, किसी चीज को न पकड़ पाना शामिल होता है. हालांकि बचाव के लिए अभी ऐसी कोई दवा नहीं है. मगर फिर भी रेग्युलर एरोबिक व्यायाम, डाइट में एंटीऑक्सीडेट्स शामिल कर इस रोग के खतरे को कम किया जाता है. 


Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.


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