(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
कोरोना जैसी महामारी आई तो पहले ही चल जाएगा पता, यहां विकसित हुई खास तकनीक! कैसे करेगी काम?
कोरोना महामारी बनकर दुनिया में छाया. हालांकि नए नए वेरिएंट अभी भी दुनिया के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं. ऐसे में भविष्य मेें होने वाली महामारी को लेकर यूके से राहत भरी खबर सामने आई है.
Corona Treatment: वर्ष 2021 में कोरोना ने देश में जमकर कहर बरपाया. लाखों लोग इस वायरस की चपेट में आकर लाखों लोग संक्रमित हो गए, जबकि हजारों लोगों की डेथ हो गई. कोरोना अभी भी हवा में तैर रहा है. यह लोगों की जान के लिए खतरा बना है. इसका मौजूदा एक्स.1.16 वैरिएंट मौजूदा समय में बेहद संक्रामक बना हुआ है. भारत में सबसे ज्यादा केस इसी वेरिएंट के देखने को मिल रहे हैं. कोरोना दुनिया में महामारी बनकर उभरा. भविष्य में इस तरह की महामारी का संकट पहले ही पता चल जाए. इसको लेकर तमाम साइंटिस्ट जुटे हुए हैं. ऐसी ही तकनीक विकसित करने की कोशिश की जा रही है.
पहले ही चल सकेगा महामारी का पता
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना जैसी महामारी से पहले ही निपटने के लिए यूके में काम किया जा रहा है. यहां वेलकम सेंगर इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता इसी पर काम कर रहे हैं. शोधकर्ता ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं, जोकि श्वसन तंत्र पर अटैक करने वाले वायरस, बैक्टीरिया, फंगल डिसीज के साथ ही जेनेटिक चेंजेज पर नजर रख सकेंगे. इस तकनीक को जेनेटिक अर्ली वॉर्निंग सिस्टम कहा जा रहा है.
क्या है ये तकनीक?
इंग्लिश पोर्टल द गार्जियन में इसको लेकर स्टडी पब्लिश की गई है. इसमें शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि कोरोना जैसे वायरस भविष्य में भी खतरे के रूप में देखे जाएंगे. रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी तकनीक विकसित की जा रही है, जिससे भविष्य में विकसित हो रहे कोरोना के वेरिएंट की जानकारी हो सकेगी. शोधकर्ताओं का कहना है कि एक ओर जहां कोरोना के नए वेरिएंट के लक्षणों की जानकारी होगी. वहीं, इन्फ्लुएंजा वायरस, रेस्पिरेटरी सिन्सिटियल वायरस के भी नए वेरिएंट की जानकारी मिल जाएगी. यह एक तरह से ऐसा होगा कि भविष्य में कोई वायरस महामारी की शक्ल में आता है तो उसकी जानकारी पहले हो सकेगी.
तकनीक को सस्ता बनाने की कोशिश
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह तकनीक यूके के कैम्ब्रिजशेयर के वेलकम सेंगर इंस्टीट्यूट ने विकसित की है. शोधकर्ता इस तकनीक को सस्ता बनाने में लगे हुए हैं, ताकि ये हर देश में आसानी से उपलब्ध हो जाए. शोधकर्ता इस तकनीक से श्वसन वायरस, बैक्टीरिया और फंगी में हो रहे जेनेटिक बदलावों पर इससे नजर रखी जा सकेगी.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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