कोरोना के मरीजों के लक्षणों को लेकर पूरी दुनिया में नए-नए रिसर्च किए जा रहे हैं. एक नए रिसर्च में पता चला है कि बिना लक्षण वाले यानि asymptomatic लोगों में से करीब हर पांचवें मरीज में एक महीने तक लॉन्ग कोविड के लक्षण रहे हैं. ऐसे लोगों को पूरे महीने कोरोना से जुड़ी कोई न कोई परेशानी होती रही है. हालांकि हल्के लक्षण होने की वजह से ज्यादातर लोग घर में आइसोलेशन में रहकर ही ठीक हो रहे हैं. अमेरिका में इस स्टडी को किया गया है. जिसमें कहा गया है कि, 'कोविड -19 के लक्षण कम होने के बावजूद कई लोगों को ये लंबे समय तक प्रभावित कर रहा है.'
लॉन्ग कोविड का खतरा
हल्के लक्षण वाले कोरोना के मरीजों में करीब 4 सप्ताह से ज्यादा तक लॉन्ग कोविड के लक्षण रहे हैं. ऐसे लोगों को दर्द, सांस लेने में दिक्कत, बेचैनी, बहुत थकान, हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या रही है.
इस स्टडी में ये भी कहा गया है कि कोरोना से ठीक होने के 30 दिन या उससे ज्यादा समय के बाद, ऐसे मरीजों के मरने की संभावना 46 गुना ज्यादा थी, जिन्हें कोरोना का पता लगने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया और ठीक होने के बाद घर भेज दिया गया. जबकि जो लोग घर में रहकर ठीक हुए हैं उनमें मरने वालों की संख्या कम थी.
इस स्टडी में कहा गया है कि कोरोना के एसिम्टोमैटिक मरीजों में से 19 प्रतिशत मरीजों में इलाज के 30 दिन बाद लॉन्ग कोविड लक्षण नज़र आए. जिसमें से सिर्फ 50 प्रतिशत लोग ही अस्पताल में भर्ती हुए. 27.5 प्रतिशत लोग घर में रहकर ही ठीक हो गए.
कोरोना के मरीजों में उम्र के हिसाब से लॉन्ग कोविड के लक्षण नज़र आए. बच्चों में आंत से जुड़ी समस्या हुई, वहीं पुरुषों से ज्यादा महिलाओं में लॉन्ग कोविड के लक्षण नज़र आए. ज्यादातर पुरुषों में हार्ट में सूजन की समस्या सामने आई. इनमें से एक चौथाई लोगों की उम्र 19-29 के बीच थी. कुछ लोगों में डिप्रेशन, टेंशन और एडजस्टमेंट डिसऑर्डर की समस्या भी देखने को मिली.
लॉन्ग कोविड की वजह
लॉन्ग कोविड के कारणों का अभी तक ठीक तरह से पता नहीं चल पाया है. इसे पोस्ट कोविड सिंड्रोम या पोस्ट-एक्यूट सीक्वल भी कहते हैं. एक्सर्ट्स का कहना है कि संक्रमण के शुरुआती दौर में वायरस तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है. इसकी एक वजह ये भी हो सकती है. ये बीमारी बहुत धीमी गति से ठीक होती है ऐसे में लंबे समय तक वायरस का असर शरीर में बना रहता है.
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