Coronavirus: नया वेरिएन्ट आने के बाद दूसरी बार संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी, वैज्ञानिकों ने जताई ये बड़ी आशंका
कोरोना वायरस के नए वेरिएन्ट्स से दूसरी बार संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा नहीं मिल सकती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पहली बार का संक्रमण सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता. हाल के दिनों में सामने आए कुछ मामलों ने वैज्ञानिकों की चिंता को बढ़ा दिया है.
कोविड-19 का शिकार होना कोरोना वायरस के नए वेरिएंट से दोबारा संक्रमित होने के खिलाफ सुरक्षा नहीं दे सकता. नए रिसर्च में बताया गया है कि कमजोर इम्यून सिस्टम होने के साथ कोरोना वायरस की पुरानी किस्मों से दूसरी बार भी संक्रमित होने की आशंका है. कोविड-19 से रिकवर हो चुके लोगों में बीमारी के खिलाफ इम्यूनिटी कब तक रहती है, महामारी के दौरान ये एक बड़ा सवाल है.
एक बार का संक्रमण कोरोना वायरस से सुरक्षा के लिए है पर्याप्त?
वैज्ञानिक अभी भी मानते हैं कि एक शख्स का दूसरी बार वायरस की चपेट में आने की संभावना बहुत कम है और आम तौर से दूसरी बार संक्रमण की गंभीरता पहले के मुकाबले कम होती है. लेकिन, हाल के दिनों में सामने आए कुछ मामलों ने चिंता को बढ़ा दिया है. दक्षिण अफ्रीका में प्रायोगिक वैक्सीन के मानव परीक्षण के दौरान पता चला कि 2 फीसद लोग नई किस्म से संक्रमित हुए जबकि ये लोग पहले भी वायरस की पुरानी किस्म से संक्रमित हो चुके थे.
ब्राजील में भी वायरस की नई किस्म से दूसरी बार बीमार पड़ने के कई मामले सामने आ चुके हैं. अमेरिका के आईशन स्कूल ऑफ मेडिसीन के रिसर्च में खुलासा हुआ कि 10 फीसद नौ सेना के अभ्यर्थियों में संक्रमण के सबूत मिले थे और ट्रेनिंग शुरू होने से पहले निगेटिव पाए जाने के बावजूद बाद में दूसरी बार संक्रमित पाए गए. शोधकर्ताओं का कहना है कि रिसर्च को कोरोना वायरस की नई किस्म के उजागर होने से पहले पूरा कर लिया गया था.
नई किस्मों से दूसरी बार संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा नहीं
उन्होंने बताया कि पहली बार के संक्रमण से आपको सुरक्षा की गारंटी नहीं मिल जाती है बल्कि दोबारा संक्रमण का पर्याप्त खतरा बरकरार रहता है. दूसरी बार कोविड-19 के शिकार लोगों में लक्षण मामूली होने या जाहिर न होने के बावजूद वायरस को दूसरों तक फैलाने की क्षमता रहती है. इसलिए, स्वास्थ्य अधिकारी कहते हैं कि टीकाकरण लंबे समय में समस्या का हल है और मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और अक्सर हाथों को धोने पर उनका जोर है.
दक्षिण अफ्रीका में डॉक्टरों ने पिछले साल के आखिरी हफ्तों में ऐसे इलाकों में मामले का उछाल देखा था, जहां ब्लड जांच से पता चला कि बहुत लोग पहले ही वायरस को हरा चुके थे. डॉक्टर शब्बीर मेहदी ने बताया कि हाल तक इस बात के संकेत मिले थे कि पूर्व का संक्रमण कम से कम नौ महीने तक सुरक्षा देता है, इसलिए दूसरी लहर तुलनात्मक रूप से कम होनी चाहिए.
वैज्ञानिकों ने वायरस की ऐसी नई किस्म का पता लगाया था जो ज्यादा संक्रामक और खास इलाज के खिलाफ प्रतिरोध की कम क्षमता रखती है. अब दक्षिण अफ्रीका में 90 फीसद से ज्यादा मामले उसी का नतीजा हैं और अमेरिका समेत 40 देशों में फैल चुका है. मेहदी ने नोवावैक्स की वैक्सीन को रिसर्च के बाद नई किस्म के खिलाफ कम प्रभावी पाया. उन्होंने बताया कि बुनियादी तौर पर पता चलता है कि दक्षिण अफ्रीका में वायरस की शुरुआती किस्म से पहली बार का संक्रमण नई किस्म के खिलाफ सुरक्षा नहीं देता है.
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