कोरोना वायरस की चपेट में आने के महीने बाद भी लोगों के शरीर में उसके अवशेष बचे रहते हैं. एक शोध में खुलासा किया गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि बीमारी का पहली बार पता चलने के चार सप्ताह बाद मरीजों को दोबारा जांच कराना चाहिए.
कोरोना वायरस के अवशेष का खुलासा
शोधकर्ताओं ने इटली में बुरी तरह प्रभावित इलाके के 1100 से ज्यादा लोगों पर शोध किया. उन्होंने शोध के दौरान पाया कि ‘वायरल क्लीयरेंस’ होने का औसत समय 31 दिन था. उन्होंने बताया कि हो सकता है कोई पीड़ित ठीक हो गया हो और उसके अंदर कोरोना का लक्षण नहीं नजर आए. मगर वायरस से पीड़ित होने की मजबूत आशंका रहती है. उन्होंने कहा कि हो सकता है उसका कुछ अंश खून में रह जाए और संक्रमित कर दे. हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि शरीर को कोविड-19 से छुटकारा पाने में कितना समय लगता है. कोरोना की जांच में पॉजिटिव पाए जाने के बाद जरूरी नहीं कि सभी लोग वायरस संक्रमित करनेवाले हों.
महीनों बाद शरीर में बचे रहते हैं
शोधकर्ताओं ने इलाज के बाद महीनों उन्हें बीमारी से पीड़ित देखा. जबकि दूसरे अन्य लोगों ने कुछ दिनों तक ही बीमारी का अनुभव किया. ब्रिटेन में बहुत सारे पॉजिटिव जांच के नतीजे ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है. ये जांच रिजल्ट उन लोगों के आ रहे हैं जो संक्रामक या बीमार नहीं हैं. लेकिन बीमारी से ठीक होने के बाद वायरस के हिस्से फिरते रहते हैं. शोधकर्ताओं ने उत्तरी इटली के स्थानीय स्वास्थ्य विभाग में इलाके के लोगों का टेस्ट नतीजा देखा.
1259 मरीज पहले पॉजिटिव पाए गए थे बाद में उन्हें निगेटिव घोषित किया गया. इससे पता चला कि उन्हें वायरल क्लीयरेंस मिल चुका था. कोविड-19 की पहली बार जांच के बाद उन्हें बीमारी से मुक्त होने का सर्टिफिकेट मिला. वायरल क्लीयरेंस हासिल होने में उन्हें औसत समय 31 दिन लगा. 1162 मरीजों का अंतराल से लगातार कई टेस्ट किया जाता रहा. इस दौरान पता चला कि पहली बार जांच के हफ्तों बाद उनमें वायरस पाए गए. वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि सभी तरह का क्लीयरेंस मिलने से पहले दोबारा जांच कराना चाहिए.
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