Coronavirus Update: कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कोविड-19 (Covid-19) से रिकवर होने के बाद भी कुछ लक्षण इसके शरीर में दिखाई देते हैं. वहीं लंबे समय तक कोरोना संक्रमण से शरीर की वेगस तंत्रिका की कार्यक्षमता में कमी आ सकती है. एक शोध में यह जानकारी दी गई है. जिसके कारण दिल की धड़कन पर भी असर पड़ सकता है.


यह तंत्रिका शरीर के काफी प्रकार्यात्मक कार्यों को पूरा करती है और दिल की धड़कन और बोलचाल की क्षमता को निर्धारित करती है. यह तंत्रिका मस्तिष्क से लेकर धड़ तक जाती है और दिल, फेंफड़ों और आंतों तक इसका विस्तार होता है. यह भोजन निगलने में हमारी गले की मांसपेशियों को नियंत्रित भी करती है. इसके अलावा यह दिल की धड़कन, बोलचाल, मुंह से भोजन को आंतों तक ले जाने की आंतो की मांसपेशियों की क्षमता,पसीना आने और अन्य गतिविधियों को नियंत्रित करती है.


इनमें आती है कमी


इस शोध को स्पेन में यूनिवर्सिटी अस्पताल जर्मांस ट्राएस आई पुंजोल के शोधकर्ताओं ने अंजाम दिया है. उनका कहना है कि लंबे समय तक कोविड रहने से वेगस तंत्रिका की कार्यक्षमता में कमी आ जाती है और इसकी वजह से कोरोना संक्रमित लोगों में बोलने की क्षमता में कमी, निगलने में कठिनाई, सुस्ती और चक्कर आने, दिल की असामान्य और तेज धड़कन, निम्न रक्त चाप और दस्त लगने जैसे कारणों की स्पष्ट व्याख्या की जा सकती है.


शोधकर्ता डॉ. गेम्मा लाडोस ने बताया कि हमारे निष्कर्ष लंबे समय तक कोविड संक्रमित (Covid-19) लोगों में पाई जाने वाली अन्य व्याधियों को समझने में मदद कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि दीर्घकालीन अवधि तक कोविड संक्रमण संभावित रूप से कईं अंगों को निष्क्रिय करने वाला सिंड्रोम है जो अनुमानित 10-15 प्रतिशत लोगों को प्रभावित करता है. इन लक्षणों के हफ्तों से लेकर एक साल तक बने रहने की संभावना है.


टीम ने इस तंत्रिका से जुड़े लक्षणों के साथ 348 मरीजों को अवलोकन कर इमेजिंग और कार्यात्मक परीक्षणों किए. इस दौरान वेगस तंत्रिका का एक प्रायोगिक, व्यापक रूपात्मक और कार्यात्मक मूल्यांकन किया गया. लगभग 66 प्रतिशत मरीजों ने इस तंत्रिका की अक्षमता से जुड़े कम से कम एक लक्षण के 14 महीने तक बने रहने की शिकायत की.


उन्होंने कहा, "वेगस नर्व डिसफंक्शन के लक्षणों में तंत्रिका का मोटा होना, निगलने में परेशानी और हुआ सांस लेने में अनियमितता जैसे लक्षण शामिल थे." इस शोध के संबंध में अप्रैल में लिस्बन में होने वाले यूरोपियन कांग्रेस ऑफ क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी एंड इंफेक्शियस डिजीज (ईसीसीएमआईडी 2022) में प्रायोगिक अध्ययन प्रस्तुत किया जाएगा.


Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों की एबीपी न्यूज़ पुष्टि नहीं करता है. इनको केवल सुझाव के रूप में लें. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट पर अमल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.


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