Uzbekistan में कफ सिरप पीने से दर्जनों बच्चों की मौत, इसलिए खरीदते वक्त इन बातों का रखें ध्यान
भारत में बनने वाले कफ सिरप (Cough Syrup) पीने से गाम्बिया और उज्बेकिस्तान दर्जनों बच्चों की मौत हो गई है.
भारत में बनने वाले कफ सिरप (Cough Syrup) पीने से गाम्बिया और उज्बेकिस्तान दर्जनों बच्चों की मौत हो गई है. मंगलवार को एक सरकारी नोटिस जारी किया गया है. जिसमें यह कहा गया है कि अब कफ सिरप जब भी भारत से निर्यात किया जाएगा पहले उसका टेस्ट होगा. 22 मई को स्वास्थ्य मंत्रालय से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी भी कफ सिरप के निर्यात से पहले उसे सरकारी लैब में जांच किया जाएगा. इस जांच में पास होने का बाद और प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही उसे विदेश भेजा जाएगा. यह कानून 1 जून से प्रभावी किया जाएगा.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब तक इस बात पर फैसला नहीं किया गया है कि भारत के अंदर भी बिकने वाली कफ सिरप की मार्केट में आने से पहले जांच की जाएगी. इस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया है.
नोटिस ने सात संघीय सरकारी प्रयोगशालाओं की पहचान की जहां राष्ट्रीय मान्यता निकाय द्वारा प्रमाणित अन्य राज्य प्रयोगशालाओं के अलावा नमूने परीक्षण के लिए भेजे जा सकते हैं.
मैडेन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड द्वारा बनाई गई खांसी की दवाई के भारतीय परीक्षण, जो गाम्बिया में बच्चों की मौत से जुड़े थे, में कोई विष नहीं पाया गया, लेकिन मैरियन बायोटेक द्वारा बनाई गई कई दवाओं में कुछ ऐसे तत्व पाए गए है, जिनके सिरप उज्बेकिस्तान में मौतों से जुड़े थे.
रॉयटर्स ने पिछले सप्ताह बताया कि भारत अपनी दवा उद्योग नीति में बदलाव पर विचार कर रहा है, जिसमें खांसी की दवाई के साथ-साथ दवाओं के लिए कच्चे माल का परीक्षण भी शामिल है. कंपनियां किसी भी गलत काम से इनकार करती हैं.
सिरप की सील और डेट्स को जरूर देखकर ही खरीदें
कफ सिरप खरीदने से पहले एक बार बोतल पर यह जरूर देखें यह कब बना है. यानि मेन्यूफैक्चरिंग डेट्स और एक्सपायरी डेट्स. जब भी कफ सिरप खरीदें एक्सपायरी डेट होने से 2 साल पहले का खरीदें. नकली दवा बेचने वाले सिरप के ऊपर के डिस्क्रिप्शन को नहीं बदल पाते हैं. जिसकी वजह से आसानी से पता लगाया जा सकता है कि दवा असली है या नकली. सिरप की सील तो जरूर चेक करें.
सिरप पीने के बाद भी असर न हो
कोई सिरप आप मार्केट से खरीदकर आए हैं. ऐसे में वह असर नहीं कर रहा तो डॉक्टर को एक बार जरूर दिखा लें. क्योंकि डॉक्टर आसानी से असली और नकली दवा में फर्क कर सकते हैं. प्रिस्क्रिप्शन में वह अपने हिसाब से दवा बदल सकते हैं.
क्यूआर या यूनिक कोड प्रिंट है जरूरी है
नियम के मुताबिक किसी भी 100 रुपये से ज्यादा वाले दवा पर बार कोड रहना बेहद है जरूरी है. बार कोड के जरिए आप आसानी से पता लगा सकते हैं कि यह असली है या नकली.
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