चीनी रिसर्च में पाया गया है कि मायोपिया के नए मामलों की दर बच्चों के बीच 2019 की तुलना में दोगुनी हो गई. ये खुलासा किया है सुन यात सेन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने. उनका मानना है कि कोविड-19 की वजह से लाइफस्टाइल में आए बदलाव जैसे महामारी के दौरान वर्चुअल क्लास ने बच्चों की आंख को नुकसान पहुंचाया. टीम ने नोट किया कि दुनिया भर में लोगों पर लंबे समय तक पड़नेवाले प्रभावों का ये भी उदाहरण है. महामारी से जुड़े जिदंगी में बदलावों का बच्चों पर देर तक नकारात्मक असर हो सकता है, जैसे मानसिक स्वास्थ्य के मामलों में बढ़ोतरी. शोधकर्ताओं की टीम छोटे बच्चों में मायोपिया के विकास पर महामारी से पहले भी रिसर्च कर रहे थे. 


वर्चुअल क्लास से बच्चों की आंखों के स्वास्थ्य को पहुंचा नुकसान


2018 में एक हजार से ज्यादा बच्चों पर स्थिति की जांच की गई. उन्होंने 2019 में एक बार फिर बच्चों के ग्रेड 3 में पहुंचने पर मायोपिया को जांचा. चीन के वुहान में 2019 के अंत पर कोरोना महामारी शुरू हो चुकी थी, और 2020 की शुरुआत तक लॉकडाउन लगाया गया. 2020 के अंत में शोधकर्ताओं ने पाया कि महामारी से पहले के ग्रुप में 7.5 फीसद बच्चों को मायोपिया नहीं था, लेकिन 15 फीसद बच्चों में दो जांच के बीच किसी हद तक स्थिति पाई गई. इसका मतलब हुआ कि छोटे बच्चों में मायोपिया के नए मामलों की दर 2020 के दौरान पहले वर्ष की तुलना में दोगुना हो गई. रिसर्च के नतीजों का प्रकाशन JAMA Ophthalmology में हुआ है. 


कोरोना काल के दौरान आई रुकावट से दोगुने हुए मायोपिया


शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि दो वर्षों के बीच मायोपिया के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी स्क्रीन टाइम बढ़ने के कारण हुई. कोविड-19 के कारण बच्चों को वर्चुअल क्लास की तरफ मोड़ने को मजबूर कर दिया गया. इस दौरान बच्चे एक दिन में कई घंटे स्क्रीन पर ज्यादा समय और खाली समय को बाहर कम बिताते थे. शोधकर्ताओं का कहना है कि महामारी के दौरान जिंदगी में आई रुकावट की वजह से लोगों को कई संभावित लंबे प्रभावों का सामना करना पड़ा. हालांकि, कोरोना काल में पर्यावरण परिवर्तन के लंबे प्रभावों को और जांचने की जरूरत है. कोविड-19 के कारण स्कूलों की बंदी से पैदा हुआ सामाजिक अलगाव का संबंध बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे डिप्रेशन, चिंता में बढ़ोतरी से जुड़ता है. 


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