Corona Virus: कोविड वायरस ने देश ही नहीं दुनिया में कहर बरपाया. भारत में डेल्टा वेरिएंट की चपेट में आकर हजारों लोगों की मौत हो गई. देश में शायद ही ऐसा कोई घर बचा हो, जिसमें कोरोना वायरस ने दस्तक न दी हो. कोविड को लेकर साइंटिस्ट लगातार रिसर्च कर रहे हैं. कोरोना वायरस के नए रूप पुराने से कितने घातक हैं. बॉडी को क्या नुकसान पहुंचा सकते हैं या पहुंचा रहे हैं. इस पर रिसर्च जारी है. अब कोविड को लेकर ऐसी ही स्टडी सामने आई है, जिसके नतीजे परेशान करने वाले हैं.


54 हजार लोगों पर की गई रिसर्च
लंदन की क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 54 हजार पार्टिसिपेंटस पर रिसर्च की. यह स्टडी 24 अक्टूबर को जनरल हार्ट में पब्लिश हुई है. इस स्टडी में कोविड की दूसरी लहर में हुए बदलाव और कोरोना के इफेक्ट को लेकर रिसर्च की गई थी. यह रिसर्च करीब साढ़े 4 महीने तक चली. 


2.7 गुना अधिक खून के थक्के बनने का खतरा
स्टडी में सामने आया कि जो कोविड पेशेंट अस्पताल में भर्ती नहीं थे. उनमें 2.7 गुना तक खून के थक्के बनने का खतरा पैदा हो गया. डॉक्टरों ने इसे वीनस थ्रोम्बोएम्बोलॉज्मि होने की स्थिति कहा है. डीप वेन थ्रोम्बोसिस वो स्थिति है,जब खून में डीप क्लॉट बन जाता है. 


जान जाने का खतरा अधिक
रिसर्च में सामने आया कि जो लोग कोविड पॉजीटिव थे. अस्पताल में भर्ती नहीं थे. उन लोगों में वीनस थ्रोम्बोएम्बोलॉज्मि की वजह से जान जाने का खतरा अधिक पाया गया. यह खतरा उन लोगों से 10 गुना अधिक था. जिन्हें कोविड नहीं हुआ था. वहीं, जो लोग कोविड की वजह से अस्पताल में भर्ती थे. उनमें थ्रोम्बोलॉज्मि बीमारी होने का खतरा 28 गुना बढ़ गया. हार्ट पफेल होने का 22 गुना और स्टोक आने का खतरा 18 गुना तक बढ़ गया.


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