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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

बुढ़ापे का सामान्य संकेत नहीं है डिमेंशिया, जानिए जल्दी पता लगाना क्यों है बेहद जरूरी

डिमेंशिया की पहचान और शुरू में पता लगाने के बारे में जागरुकता पैदा करना वक्त की जरूरत है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रिपोर्ट जारी कर इस तरफ ध्यान दिलाया है कि दुनिया भर में 5 करोड़ 50 लाख लोग डिमेंशिया के साथ जी रहे हैं और हर 3 सेकंड पर एक नया मामला सामने आ रहा है. बुजुर्गों के बीच निर्भरता का एक प्रमुख कारण और मौत का सात प्रमुख कारण होने के बावजूद डिमेंशिया के शुरुआती संकेत और लक्षणों पर जागरुकता बेहद कम है.

दुनिया की आबादी का बुढ़ापा और डिमेंशिया की संख्या 2030 तक 7 करोड़ 80 लाख बढ़ने की उम्मीद है. अक्सर भूलने की बीमारी, भ्रम और व्यवहार में बदलाव को उम्र बढ़ने का एक सामान्य हिस्सा के रूप में खास समस्या समझते हुए दरकिनार कर दिया जाता है, और यही पहचान में स्पष्ट देरी का कारण बनता है. 

डिमेंशिया की पहचान और इलाज की चुनौतियां
डिमेंशिया संकेतों और लक्षणों का एक ग्रुप यानी सिंड्रोम है, जो दिमाग में चोट या बीमारियों के नतीजे में होता है और ये उम्र बढ़ने का सामान्य हिस्सा नहीं है. आम लक्षणों में अधिकतर याद्दाश्त की कमी, भाषा को समझने और खुद को बयान करने की समस्या, घर का काम करने में दुश्वारी, खराब निर्णय शामिल हैं. मूड और व्यवहार में बदलाव भी आम हैं. इन समस्याओं के नतीजे में शुरुआती चरण के दौरान डिमेंशिया पीड़ित अक्सर काम से अलग हो जाते हैं और धीरे-धीरे सामाजिक गतिविधियों को नजरअंदाज करना शुरू कर देते हैं.

इन बदलावों से गुजरनेवाले एक शख्स के लिए ये अपमानजनक हो सकता है. डिमेंशिया पर 30 साल से ज्यादा रिसर्च के बावजूद मेडिकल साइंस इस बीमारी का इलाज ढूंढने में असमर्थ है. मानसिक सेहत की गिरावट की प्रक्रियाओं के नतीजे में डिमेंशिया पीड़ित धीरे-धीरे सभी बुनियादी कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं. देखभाल का बोझ मुख्य रूप से परिवार के सदस्यों पर आता है.

शुरू में पता लगने से कई बाधा हो सकती है दूर
रिसर्च से पता चलता है कि पहचान के बाद औसत जीवनकाल करीब 10 वर्ष होता है, लेकिन 5-15 वर्षों के बीच अलग-अलग भी हो सकता है. लेकिन, समय से पता लगना जरूरी है क्योंकि इससे परिवार को लंबे समय तक देखभाल का मंसूबा बनाने में आसानी होती है. कानूनी मामलों के सिलसिले में महत्वपूर्ण फैसले किए जा सकते हैं जबकि डिमेंशिया पीड़ित अपनी इच्छा को देखते हुए फैसला लेने की स्थिति में होता है. सितंबर विश्व डिमेंशिया जागरुकता का महीना है, और इस साल दुनिया भर के संगठन डिमेंशिया की शुरुआती पहचान के बारे में बहुत जरूरी जागरुकता पैदा करने पर फोकस कर रहे हैं.

भारत में अगले 10 वर्षों के दौरान डिमेंशिया के साथ रहनेवालों की संख्या 76 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है. इसलिए जल्द से जल्द पहचान निश्चित तौर पर समस्याओं को दूर करने की दिशा में पहला कदम है. डिमेंशिया की संख्या दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही है, ऐसे में जरूरी है कि इस मिथक को तोड़ना कि ये बुढापे का सामान्य हिस्सा है. शुरुआती पहचान को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है जो परिवार को भविष्य की तैयारी में मदद कर सकता है. 

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