गर्भवती महिलाओं को कई शारीरिक और मानसक बदलावों से गुजरना पड़ता है. इस बीच पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान महिला की मनोवैज्ञानिक परेशानी उसके बच्चे में अस्थमा का खतरा बढ़ा सकती है. नए शोध में बताया गया है कि गर्भावस्था में मां के डिप्रेशन से बच्चे में अस्थमा का खतरा बढ़ता है.


गर्भावस्था के दौरान मां के डिप्रेशन से बच्चे को दमा का खतरा


शोधकर्ताओं ने 4 हजार से ज्यादा बच्चों के माता-पिता से गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौरान और फिर तीन साल बाद मनोवैज्ञानिक तनाव के हवाले से प्रश्वावली भरवाए. मां से भी यही प्रश्नावली बच्चे के जन्म के 2-6 माह के दौरान पूरे करवाए गए. 'थोराक्स' पत्रिका में प्रकाशित शोध से पता चला कि 362 महिलाओं और 167 पुरुषों को मां के गर्भावस्था के दौरान स्पष्ट मनोवैज्ञानिक परेशानी का सामना करना पड़ा. जिससे संकेत मिला कि गर्भावस्था के दौरान मां की मनोवैज्ञानिक परेशानी 10 साल की उम्र तक के बच्चों के फेफड़ों की खराब क्रिया और दमा के खतरे पर प्रभाव डालती है.


संभावित तौर पर मैकेनिज्म गर्भाशय में होने का चला पता


शोधकर्ताओं ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन और मनोवैज्ञानिक परेशानी बच्चों के फेफडों की क्रिया को नकारा बनाने और दमा की पहचान से जुड़ा हिस्सा है. इसलिए, उनका मानना है कि मनोवैज्ञानिक समस्याएं बच्चे के फेफड़ों की क्रिया को प्रभावित करते हैं. फिर भी, जन्म के बाद माता-पिता में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं और बच्चों में दमा के खतरे के बीच कोई संबंध साबित नहीं हो सका.


नीदरलैंड की एरासमोस यूनिवर्सिटी के शोध में शामिल डॉक्टर एवेलन मील का कहना था, "वास्तव में ये दमा के कई कारणों में से सिर्फ एक वजह है. मगर, हमें पता चला कि ऐसा प्रभाव सिर्फ मां में होता है. जिससे मालूम होता है कि ये मैकेनिज्म संभावित तौर पर गर्भाशय में होता है. मगर हमारा ये शोध अवलोकन अध्ययन है और अभी हम उसके प्रभाव के बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कह सकते."


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