नयी दिल्लीः बड़ों के साथ-साथ कम उम्र के लोगों में भी बढ़ते हार्ट डिजीज़ पर चिंता जाहिर करते हुए डॉक्टरों ने लोगों को इसके लक्षणों को नजरअंदाज न करने और अपनी जीवनशैली में सुधार लाने की सलाह दी है. भारत में मृत्यु का एक मुख्य कारण हार्ट से जुड़ी बीमारियां हैं. इसकी वजह दिल संबंधी बीमारियों के इलाज की सुविधा न मिलना या पहुंच न होना और जागरूकता की कमी है.
क्या कहते हैं आंकड़े-
हालिया आंकड़ों के अनुसार 99 लाख लोगों की मृत्यु गैर - संचारी रोगों (नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों) के कारण हुई. इसमें से आधे लोगों की जान हृदय रोगों के कारण हुई.
दूसरी ओर हार्ट रोगों में ‘हार्ट फेल्योर’ भारत में महामारी की तरह फैलता जा रहा है जिसकी मुख्य वजह हार्ट की मांसपेशियों का कमजोर हो जाना है.
लक्षणों को नहीं पहचान पाते लोग-
विशेषज्ञों ने कहा कि अब तक हार्ट फेल्योर की समस्या पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था. इसलिए लोग इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते थे. इस समस्या के तेजी से प्रसार का एक कारण यह भी है.
क्या कहते हैं डॉक्टर-
‘कार्डियोलोजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष डॉ. शिरीष (एम. एस.) हिरेमथ ने बताया कि भारत में तेजी से हार्ट फेल्योर के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत भी बढ़ती जा रही है. उन्होंने बताया कि हार्ट फेल्योर को अमूमन हार्ट अटैक ही समझ लिया जाता है.
क्या है हार्ट फेल्योर-
हार्ट फेल्योर को समझना जरूरी है. अक्सर लोगों को लगता है कि हार्ट फेल्योर का ताल्लुक दिल का काम करना बंद कर देने से है जबकि ऐसा कतई नहीं है. हार्ट फेल्योर में दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं जिससे वह ब्लड को प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता. इससे ऑक्सीजन और जरूरी पोषक तत्वों की गति सीमित हो जाती है.
हार्ट फेल्योर के कारण-
कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सी ए डी), हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट वाल्व बीमारी, कार्डियोमायोपैथी, फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज, मोटापा, शराब का सेवन, दवाइयों का सेवन और फैमिली हिस्ट्री के कारण भी हार्ट फेल होने का खतरा रहता है.
हार्ट फेल्योर के लक्षण-
इस बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरूकता बढ़ाना बहुत जरूरी है. सांस लेने में तकलीफ, थकान, टखनों, पैरों और पेट में सूजन, भूख न लगना, अचानक वजन बढ़ना, दिल की धड़कन तेज होना, चक्कर आना और बार-बार पेशाब जाना इसके प्रमुख लक्षण हैं.
क्यों बढ़ रहे हैं फेल्योर के मामले-
पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में यह बीमारी एक दशक पहले पहुंच गई है. बीमारी होने की औसत उम्र 59 साल है. बीमारी की जानकारी न होना, ज्यादा पैसे खर्च होना और बुनियादी ढ़ांचे की कमी के कारण हार्ट फेल्योर के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है. साल 1990 से 2013 के बीच हार्ट फेल्योर के मामलों में करीब 140 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है. जीवनशैली में बदलाव और तनाव के कारण युवकों भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं. अमेरिका और यूरोप की तुलना में भारत में रोगी 10 साल युवा हैं.
हार्ट फेल्योर का इलाज-
इस बीमारी के लक्षणों को नजरअंदाज न करने और समय रहते बीमारी का पता लगा कर इलाज शुरू करने और जीवनशैली में बदलाव से इस बीमारी का खतरा दूर हो सकता है.
नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.