लंदन: 'जठराग्नि' (digestive fire) के बारे में तो आपने सुना ही होगा, इसका मतलब होता है पेट की आग. लेकिन क्‍या आप जानते हैं सचमुच हमारे पेट में आग होती है. जी हां, हाल ही में सामने आए एक शोध में पता चला है कि वास्तव में हमारे पेट में एक तरह की आग होती है.

क्‍या कहती है रिसर्च-

ताजा शोध के अनुसार, भोजन करने के साथ ही हमारे पेट की ये आग भड़क उठती है, लेकिन यह हमारे लिए हानिकारक नहीं बल्कि लाभकारी है.

ये आग एक सुरक्षा तंत्र के रूप में काम करती है जो खाने के साथ एबडोमन में गए बैक्‍टीरिया से लड़ने का काम करती है.

क्‍सा कहते हैं नतीजे-

निष्कर्षो से पता चला है कि ये 'आग' भारी शरीर वाले व्यक्तियों में नहीं होती है, जिससे डायबिटीज होने का खतरा रहता है.

दूसरी तरफ हेल्‍दी लोगों में शॉर्ट टर्म रिस्‍पॉन्‍स के रूप में भड़की यह 'आग' इम्‍यून सिस्‍टम को एक्टिव करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

कहां की गई रिसर्च-

स्विट्जरलैंड के बेसलयूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा की गई इस रिसर्च  में पता चला है कि ब्‍लड में ग्लूकोज की मात्रा के आधार पर मैक्रोफेजेज की संख्या (एक प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाएं या अपमार्जक कोशिकाएं) खाने के दौरान आंत के चारों तरफ बढ़ जाती है. यह संदेशवाहक पदार्थ इंटरल्यूकिन-1बीटा (आईएल-1बीटा) का उत्पादन करती हैं.

यह अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं में इंसुलिन के उत्पादन को उत्तेजित करता है और मैक्रोफेज को आईएल-1बीटा के उत्पादन का संकेत देता है.

इंसुलिन और आईएल-1बीटा साथ मिलकर ब्‍लड में ग्लूकोज के लेवल को नियमित करने का काम करते हैं, जबकि आईएल-1बीटा प्रतिरक्षा प्रणाली को ग्लूकोज की आपूर्ति को सुनिश्चित करता है और इस तरह से सक्रिय बना रहता है.

क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट-

शोधकर्ताओं का कहना है कि चयापचय की प्रक्रिया और प्रतिरक्षा प्रणाली जीवाणु और पोषकों पर निर्भर होती है. इन्हें खाने के दौरान लिया जाता है. शोध के मुख्य लेखक इरेज ड्रोर ने कहा कि पर्याप्त पोषक पदार्थो से प्रतिरक्षा प्रणाली को बाहरी जीवाणु से लड़ने में मदद मिलती है. ड्रोर ने कहा कि इसके विपरीत, जब पोषक पदार्थो की कमी होती है, तो कुछ शेष कैलरी को जरूरी जीवन की क्रियाओं के लिए संरक्षित कर लिया जाता है. इसे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की कीमत पर किया जाता है.

शोध पत्रिका 'नेचर इम्यूनोलॉजी' के ताजा अंक में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है.