Mental Health: कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के चलते घर में बंद तमाम लोगों ने डिप्रेशन, चिंता और तनाव जैसी मानसिक परेशानियों का सामना किया. न सिर्फ इन लोगों ने बल्कि फ्रंटलाइन पर तैनात कई डॉक्टर्स और नर्स ने भी मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं को अनुभव करने का दावा किया है. एक साइकाइट्रिक ने इस परेशानी का जिक्र करते हुए कहा कि फ्रंटलाइन पर तैनात लोगों की स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं का हल खोजने की जरूरत है. अमेरिका के नेब्रास्का में ओमाहा इंसोमेनिया एंड साइकेट्रिक सर्विस की चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. विथ्यलक्ष्मी सेल्वराज ने बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान तनाव और चिंता की वजह से डॉक्टर्स और नर्स के सुसाइड करने या ऐसा करने की कोशिश करने के कई केस देखने को मिले. 


डॉ. सेल्वराज ने कोरोना के 'लॉन्ग टर्म इफेक्ट्स' पर नागपुर में इंडियन साइंस कांग्रेस में एक प्रस्तुति दी. इसके अलावा, उन्होंने कहा कि डिप्रेशन, चिंता और ठीक से नींद नहीं आने के मामले न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में बढ़े हैं. ऐसे डिसऑर्डर के नेगेटिव रिजल्ट को रोकने के लिए मेंटल हेल्थ से जुड़े मिथ्स को दूर करने और अवेयरनेस बढ़ाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भारत में 662 वयस्कों की एक रिसर्च में 80 फीसदी से ज्यादा लोगों ने कोरोना से जुड़ी बातों को लेकर चिंतित रहने, 37.8 प्रतिशत ने संक्रमण को लेकर हद से ज्यादा सोचने, 36.4 प्रतिशत ने तनाव होने तथा 12.5 प्रतिशत ने सही से नींद नहीं आने की शिकायत जाहिर की.


कई लोगों ने किया सुसाइड


डॉ. सेल्वराज ने कहा कि रिसर्च में हिस्सा लेने वाले 80 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने कहा कि उन्हें मेंटल हेल्थ केयर की जरूरत है. साथ ही भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के रिसर्च से मालूम चलता है कि कई लोग कोरोना वायरस से इतना ज्यादा डर गए थे कि उन्होंने सुसाइड तक कर लिया. सेल्वराज ने यह भी कहा कि 40 से कम उम्र की महिलाओं और छात्रों तथा पहले से किसी बीमारी या फिर मानसिक बीमारी से पीड़ित लोग भी उस आबादी में शामिल रहे, जिनपर महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों से जूझने का जोखिम सबसे ज्यादा था.


मेंटल हेल्थ पर पड़ा सबसे ज्यादा प्रभाव


उन्होंने कहा कि कोरोना का सबसे ज्यादा प्रभाव लोगों के मेंटल हेल्थ पर पड़ा, जिस वजह से वे डिप्रेशन और घबराहट का शिकार हो गए. डॉ. सेल्वराज ने कहा कि सामाजिक रूप से अलग-थलग होना, सोशल मीडिया का जरूरत से ज्यादा उपयोग और अकेलेपन ने लोगों की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी तकलीफों को बढ़ा दिया. उन्होंने कहा कि कोविड के दौरान सिर्फ आम लोगों ने ही नहीं, बल्कि डॉक्टर्स और नर्स जैसे फ्रंटलाइन पर तैनात कर्मियों और उनके परिवारों ने भी ऐसे ही डिप्रेशन का सामना किया. उन्होंने कहा, 'डॉक्टर्स और नर्स मानसिक और शारीरिक तौर पर काफी थक गए थे. ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना की भयावह स्थिति का सामना करने, मरीजों की देखरेख करने और खुद का ध्यान रखने के लिए उन्हें किसी भी तरह की कोई ट्रेनिंग पहले नहीं दी गई थी. उन्होंने बताया कि जिन छात्रों को उन्होंने गाईड किया था, वह कोविड के बाद डॉक्टर्स या नर्स नहीं बनना चाहते थे. उन्होंने यह भी कहा कि ये पेशा अब पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है.


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