नई दिल्ली: अधिकांश भारतीय परिवारों का मानना है कि धीमी रोशनी से उनके बच्चों की आखों की रोशनी प्रभावित हो सकती है. एक सर्वे में ये बात सामने आई है.


क्या कहता है सर्वे-
फिलिप्स लाइटिंग की ओर से सोमवार को जारी एक सर्वे के नतीजों में बताया गया है कि करीब 61 फीसदी माता-पिता इस बात से इत्तेफाक रखते हैं.


भारत समेत 12 देशों में करवाए गए सर्वे के मुताबिक, भारत में बच्चों को स्कूलों और घरों में औसतन 12 घंटे धीमी रोशनी में रहना पड़ता है.


आधे से अधिक भारतीय माता-पिता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनके बच्चों को भविष्य में चश्मे की जरूरत होगी.


क्या कहते हैं एक्सपर्ट-
फिलिप्स लाइटिंग इंडिया के वाइस चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर सुमित जोशी ने कहा कि चूंकि भारतीय बच्चे ज्यादा समय घरों में रहकर स्कूल के कामकाज पर ध्यान केंद्रित रखते हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि उनको अच्छी रोशनी मिले, जो उनकी आंखों के लिए उपयुक्त हो.


सर्वे के नतीजों का विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समर्थन किया है. संगठन का मानना है कि घरों से बाहर उजाले में ज्यादा समय व्यतीत करना स्वास्थ्यकर है.


ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.