मनोचिकित्सकों ने कोविड-19 की वैश्विक महामारी से जुड़ी मानसिक स्थिति के प्रति खबरदार किया है. उन्होंने उसे ‘डूम स्क्रोलिंग’ (Doomscrolling) का नाम दिया है. उनका कहना है कि इससे मानसिक तनाव, डिप्रेशन समेत शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है.


मेडिकल की भाषा में डूम स्क्रोलिंग का मतलब ‘कोरोना महामारी के बारे में जानने के लिए इंटरनेट, न्यूज मीडिया, सोशल मीडिया का बार-बार और हद से ज्यादा इस्तेमाल करना और नकारात्मक प्रभाव रखनेवाली खबरों पर ध्यान देना’ बताया गया है. मनोचिकित्सकों के मुताबिक ये दरअसल वैश्विक महामारी का खौफ और लगातार घरों में बंद रहने की वजह से हो रहा है.


महामारी के बीच ‘डूम स्क्रोलिंग’ एक नई आफत


न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी, लेंगून हेल्थ की मनोचिकित्सक एरियान लेंग ने कहा, “ लोगों को वैश्विक महामारी की ताजा जानकारी से अपडेट रखने के लिए दुनिया भर में खबरों के बड़े संस्थान कोविड-19 के बारे में सूचना मुफ्त मुहैया करा रहे हैं. हालांकि इस तरह कोविड-19 के बारे में ताजा जानकारी तक पहुंच बहुत आसान हो गई है लेकिन इसी आधार पर मीडिया में खौफनाक और दिल दहला देनेवाली सुर्खियां भी बहुत ज्यादा हो गई हैं.”


नकारात्मक खबरों की तलाश पर जोर


मनोचिकित्सकों का मानना है कि कोरोना महामारी की बदलती परिस्थिति से जागरुक रहने की जरूरत का इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन इस दौरान डूम स्क्रोलिंग में शामिल लोग इसका ज्यादा ही शिकार हो रहे हैं. उनकी नजर हर वक्त नकारात्मक खबरों की तलाश में रहती है जिसको बढ़े ध्यान से पढ़ा जाता है. इस तरह उनकी भाषा और बात करने के अंदाज पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है. यही आदत मानसिक तनाव, डिप्रेशन, मायूसी तक पहुंचा देती है जिससे उनके सोचने समझने की क्षमता भी प्रभावित होती है.


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