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अब आसानी से होगा नी ट्रांस्पलांट, नई तकनीक ने बनाया इसे आसान!
एम्स, दिल्ली के मशहूर ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. राजेश मल्होत्रा ने देश की पहली काडावेरिक वर्कशॉप में कंप्यूटर नेविगेशन के जरिए 'फास्ट ट्रेक यूनिकोनडलर नी रिप्लेसमेंट' सर्जरी के बारे में जानकारी दी.
नई दिल्ली: आम तौर पर ओस्टियो आर्थराइटिस बढ़ने पर पूरे घुटने की सर्जरी की जाती है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. जी हां, हाल ही में एम्स के जाने-माने ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. राजेश मल्होत्रा ने एक नई तकनीक से देश को अवगत करवाया है.
यूनिकोनडलर नी रिप्लेसमेंट सर्जरी- जी हां, हाल ही में एम्स, दिल्ली के मशहूर ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. राजेश मल्होत्रा ने देश की पहली काडावेरिक वर्कशॉप में कंप्यूटर नेविगेशन के जरिए 'फास्ट ट्रेक यूनिकोनडलर नी रिप्लेसमेंट' सर्जरी के बारे में जानकारी दी. अस्वस्थ हिस्से का ही होता है इलाज- डॉ. राजेश मल्होत्रा के मुताबिक, घुटना 3 कम्पार्टमेंट में बना होता है- मेडियल कम्पार्टमेंट, लाटरल कम्पार्टमेंट और पाटेलौफेमोरल कम्पार्टमेंट. यूनिकोनडलर नी रिप्लेसमेंट सर्जरी ओस्टियो आर्थराइटिस को ठीक करता है, जो घुटने के अंदर कम्पार्टमेंट में होती है. इस सर्जरी के जरिए घुटने के स्वस्थ हिस्से को बचाकर रखा जाता है और घुटने के अस्वस्थ हिस्से का ही इलाज किया जाता है. इस प्रोसिजर में हड्डियों का विभाजन कम से कम किया जाता है इससे दर्द कम होता है और मरीज जल्दी ही रिकवरी कर आसानी से चल-फिर सकता है. खराब हिस्से की ही करवाएं सर्जरी- अगर आपके घुटने के सिर्फ एक कम्पार्टमेंट में ओस्टियो आर्थराइटिस है तो डॉ. राजेश मल्होत्रा का कहना है कि ऑर्थोपेडिक सर्जरी करवाएं लेकिन ये ध्यान रखें कि टोटल नी ट्रांस्पलांट के बजाय पार्शल नी ट्रांस्पलांट ही करवाएं. यानि सिर्फ घुटने के खराब हिस्से की ही सर्जरी हो. इसका अपना इंप्लांट डिजाइन है- यूनिवेशन एक्स यूनिकोनडलर नी रिप्लेसमेंट सर्जरी का अपना इंप्लांट डिजाइन है जो घुटने की शारीरिक रचना को रिप्रोडक्ट करता है. इसी वजह से घुटने की नैचुरल स्थिति बरकरार रहती है. इससे सर्जन बिना स्वस्थ हिस्से को कोई नुकसान पहुंचाए घुटने के अस्वस्थ हिस्से का इलाज कर पाते हैं. कैसे काम करता है यूनिकोनडलर नी रिप्लेसमेंट सिस्टम- यूनिकोनडलर नी रिप्लेसमेंट सिस्टम में एडवांस्ड पेटेंड मल्टी-लेयर सरफेस टैक्नोलॉजी है जो कि मेटल बेस्ड इंप्लांट में पाए जाने वाले मेटेल ऑयोंस को रिलीज करता है और उन्हें कम करता है. ये इंप्लांट लंबे समय तक कारगर होता है. ऐसे में इंप्लांट फिक्सेशन ज्यादा सुरक्षित माना जाता है. इंप्लांट डिजाइन मज़बूती से खुद को हड्डियों के साथ जोड़ लेता है जिससे घुटने का लूज होने का खतरा कम हो जाता है. कम्पूटर नेविगेशन के जरिए नी ट्रांस्पलांट के गैप को कम करने में मदद मिलती है. नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.Check out below Health Tools-
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प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक
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