Ear Problem: जिस तरह नेचर को देखने, समझने के लिए आंखें जरूरी हैं. उसी तरह आसपास जो कुछ चल रहा है. उसे सुनने के लिए कान भी बॉडी के इंपोर्टेंट पार्ट हैं. अमूमन लोग कहते हैं कि जहां आंखें काम नहीं करती, वहां कान काम कर जाते हैं. लेकिन आजकल की लाइफ स्टाइज ने जहां आंखों को प्रभावित किया है. वहीं कानों को भी नुकसान पहुंचा है. कानों को सबसे बड़े नुकसान होने के पीछे इयर फोन लगाना और तेज आवाज में म्यूजिक सुनना शामिल हैं. इससे देश ही नहीं दुनिया भर के किशारों के सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा है.


100 करोड़ युवा हो सकते हैं प्रभावित
कानों की सुनने की क्षमता को लेकर स्टडी की गई. इसमें बताया गया कि इयरलीड के रूप में105 डेसिबल (डीबी) तक युवा सुनना पसंद करता है, जबकि मनोरंजन स्थलों पर लाउड स्पीकर की आवाज 104 से 112 डीबी तक होती है. जबकि एडल्ट के लिए 80 डेसिबल और बच्चों के लिए 75 डेसिबल ही होनी चाहिए. रिसर्च में कुल 33 स्टडी शामिल की गईं, इनमें 17 रिकॉर्ड इयरबड और हेडफोन से जुड़े थे, जबकि 18 रिपोर्ट मनोरंजन स्थलों को लेकर की गईं. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि विश्व स्तर पर सुनने की समस्या से पीड़ित किशोर और युवा एडल्ट की संख्या 0.67 से 1.35 बिलियन तक हो सकती है. यानि यह आंकड़ा 100 करोड़ को पार कर सकता है.


बीएमजे ग्लोबल हेल्थ पत्रिका में पब्लिश हुई स्टडी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कानों की सुनने की क्षमता प्रभावित होने को लेकर बीएमजे ग्लोबल हेल्थ पत्रिका में स्टडी पब्लिश की गई है. स्टडी के अनुसार, एक अरब से अधिक किशोरों और युवाओं को हेडफोन और ईयरबड्स के उपयोग और तेज संगीत वाले स्थानों पर मौजूद रहने के कारण सुनने की क्षमता प्रभावित होने का खतरा पैदा हो गया है. मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना, यूएस के शोधकर्ताओं सहित अंतर्राष्ट्रीय टीम ने कहा कि सभी देशों की गवर्नमेंट को कान की सुरक्षा के लिए नीतियां तय की जानी चाहिए. इसके लिए लोगोें को अवेयर भी किया जाए. 


12 से 34 साल के बच्चों पर हुई रिसर्च
शोधकर्ताओं ने एक ऐज क्राइटेरिया तय कर रिसर्च की. शोधकर्ताओं ने 2022 में 12-34 वर्ष के बच्चों की अनुमानित वैश्विक आबादी का विश्लेषण किया. उसके बाद एक एवरेज तौर पर देखा गया कि पीएलडी यानि इयरबड या हेडपफोन लगाकर सुनने की क्षमता प्रभावि होना शामिल हैं. इसका एक ब्रॉड आंकड़ा तय कर संभावित पीड़ितों की संख्या का अनुमान लगाया गया है. समय पर इलाज नहीं कराया तो देश में बहरेपन के मरीजों की कापफी संख्या देखने को मिल सकती हैं.


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