Multisystem Inflammatory Syndrome: हेल्थकेयर पेशेवरों के मुताबिक, बच्चों में कोरोना वायरस से जुड़ी बीमारी मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम की जल्दी पहचान मोरबिडिटी यानी अस्वस्थता दर को काफी कम कर सकता है. उन्होंने अभिभावकों और तीमारदारों को भी सावधान किया है कि बच्चों में बुखार की उपेक्षा न की जाए. विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 के मामूली या बिना लक्षण वाले कुछ बच्चों में ये बीमारी होती है.
MIS-C का जल्दी पता चलने से अस्वस्थता दर बहुत कम हो सकती है
बच्चों में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम एक खतरनाक स्थिति है जो आम तौर पर नए कोरोना वायरस से संक्रमित होने के दो से चार सप्ताह बाद जाहिर होता है, और उसे दो माह के शिशुओं तक में भी इस बीमारी को देखा गया है. सरकार ने भी खबरदार किया है कि भले ही कोविड-19 ने अभी तक बच्चों के बीच गंभीर शक्ल अख्तियार नहीं की है, लेकिन उसका प्रभाव उनके बीच बढ़ सकता है अगर वायरस के स्वभाव में कोई बदलाव होता है या महामारी विज्ञान के कारक बदलते हैं.
उसका कहना है कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए तैयारियों को मजबूत करने के कदम उठाए जा रहे हैं. नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल ने पिछले सप्ताह एक प्रेस कांफ्रेंस में जानकारी दी थी कि बच्चों में कोरोना संक्रमण और नए सिरे से महामारी विज्ञान के दृष्टिकोण की समीक्षा करने के लिए विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया है. विशेषज्ञों के मुताबिक, बच्चों में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम का जल्दी पता लगाने से अस्वस्थता दर को काफी हद तक कम किया जा सकता है और स्थिति का प्रभावी उपचार जैसे स्टेरॉयड से किया जा सकता है.
स्थिति से निपटने के लिए तैयारियों को मजबूत करने में जुटी सरकार
उन्होंने अभिभावकों को बच्चों में बुखार को हल्के में नहीं लेने की सलाह दी. मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और लोक नायक अस्पताल में प्रोफेसर, बालचिकित्सा, अनुराग अग्रवाल ने बताया कि कोरोना वायरस से संक्रमित होनेवाले अधिकतर बच्चों में बीमारी का सिर्फ हल्का लक्षण होता है, लेकिन जिन बच्चों में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम होता है, उनके अंग और टिश्यू जैसे दिल, लंग्स, किडनी, पाचन सिस्टम, ब्रेन, स्किन और आंख बुरी तरह सूज जाते हैं.
कोलंबिया एशिया अस्पताल, पालम विहार, गुरुग्राम में बाल चिकित्सा विशेषज्ञ सुदीप चौधरी के मुताबिक, मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम भी बच्चों के बीच बढ़ रहा है. उन्होंने बताया, "पिछले पांच दिनों में उत्तरी भारत के बच्चों में 100 से ज्यादा मल्टी-ऑर्गन इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम के मामले उजागर हुए हैं, उसमें से 50 फीसद मामले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पाए गए. ये भी देखा गया है कि छोटे मरीजों में बीमारी की गंभीर शक्ल कोरोना की पहली लहर के मुकाबले ज्यादा है."
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