खाना हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन कभी-कभी हमारे खाने की आदतें हमारी भावनाओं से प्रभावित होती हैं. "इमोशनल इटिंग" और "माइंडफुल इटिंग" दो ऐसे शब्द हैं जो हमारे खाने के तरीके को बताते हैं, पर दोनों के बीच में बड़ा अंतर है. इमोशनल इटिंग में, लोग अपनी भावनाओं, जैसे कि तनाव, उदासी, या बोरियत, के कारण खाते हैं. इसमें खाना एक सांत्वना या भावनात्मक राहत के रूप में आता है. दूसरी ओर, माइंडफुल इटिंग खाने के प्रति जागरूकता और समझदारी को बढ़ावा देती है. इसमें खाने के प्रति पूरी तरह से सजग रहते हुए, उसे खाते हैं.जिससे हम अपने शरीर की भूख और संतुष्टि को बेहतर समझ पाते हैं. 







माइंडफुल इटिंग और इमोशनल इटिंग में से बेहतर क्या है, आइए जानते हैं.



  • समझदारी से खाना: माइंडफुल इटिंग का मतलब है ध्यान से खाना. इसमें हम यह सोचते हैं कि हम क्या और क्यों खा रहे हैं. इससे हम सही मात्रा में और सही खाना खाते हैं.

  • भावनाओं के आधार पर खाना: इमोशनल इटिंग में, लोग अपनी भावनाओं की वजह से खाते हैं, जैसे कि जब वे उदास या तनाव में होते हैं. इससे कई बार ज्यादा और गलत खाना खा लिया जाता है.जो की मोटापा का कारण बनता है .

  • स्वस्थ आदतें: माइंडफुल इटिंग से हमें अपने खाने की आदतों के बारे में पता चलता है और हम स्वस्थ खाना चुनने लगते हैं.

  • बेहतर चुनाव: जब हम माइंडफुल इटिंग को अपनाते हैं, तो हम अपने खाने को लेकर ज्यादा समझदारी से फैसले लेते हैं, जिससे हमारी सेहत बेहतर होती है.

  • भावनाओं का प्रबंधन: इमोशनल इटिंग में, हमें अपनी भावनाओं को समझने और उन्हें सही तरीके से संभालने की जरूरत होती है, ताकि हम गलत खाने की आदतों में न पड़ें. 

  • माइंडफुल इटिंग है ज्यादा अच्छा : माइंडफुल इटिंग इसलिए अच्छा है क्योंकि यह हमें सही और स्वस्थ खाने की आदत डालता है. इससे हम खाने के बारे में अच्छे फैसले लेते हैं और अपनी सेहत का ध्यान रख पाते हैं. यह हमें स्वस्थ रहने में मदद करता है. 


Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.


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