नई दिल्ली: भारत में करीब 56 फीसदी कॉरपोरेट कर्मचारी दिन में 6 घंटों से भी कम की नींद लेते हैं, क्योंकि उनके नियोक्ता द्वारा दिया गया लक्ष्य के बोझ से उन्हें उच्च स्तर का तनाव रहता है. जिसका असर उनकी नींद पर पड़ता. एसोचैम हेल्थकेयर समिति की रिपोर्ट में सोमवार को यह जानकारी दी गई.


रिपोर्ट में कहा गया, "नियोक्ता द्वारा अनुचित और अवास्तविक लक्ष्य देने के कारण कर्मचारियों की नींद उड़ रही है, जिससे उन्हें दिन में थकान, शारीरिक परेशानी, मनोवैज्ञानिक तनाव, प्रदर्शन में गिरावट और शरीर में दर्द जैसी परेशानियां होती हैं और इसके कारण वे जरूरत से ज्यादा छुट्टियां लेते हैं."


इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नींद में कमी की सालाना लागत 150 अरब डॉलर है, क्योंकि इससे कार्यस्थल पर उत्पादकता घट जाती है. काम का दवाब, सहकर्मियों का दवाब और कठिन बॉस, ये सभी मिलकर लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बिगाड़ रहे हैं.


रिपोर्ट में आगे कहा गया कि भारतीय कार्यबल का करीब 46 फीसदी हिस्सा तनाव से जूझ रहा है. यह तनाव निजी कारणों, कार्यालय की राजनीति या काम के बोझ के कारण है. मेटाबोलिक सिंड्रोम के मामले बढ़ रहे हैं, जिसमें मधुमेह, उच्च यूरिक एसिड, उच्च रक्त चाप, मोटापा, और बढ़ता कोलेस्ट्रॉल शामिल है.


रिपोर्ट के मानें तो सर्वेक्षण में शामिल 16 फीसदी लोग मोटापा से पीड़ित थे और 11 फीसदी लोग डिप्रेशन से पीड़ित थे. बढ़ते रक्तचाप और मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या क्रमश: 9 फीसदी और 8 फीसदी है.


रिपोर्ट में कहा गया कि स्पांडिलोसिस (5 फीसदी), हृदय रोग (4 फीसदी), सर्वाइकल (3 फीसदी), अस्थमा (2.5 फीसदी), स्लिप डिस्क (2 फीसदी) और अर्थराइटिस (1 फीसदी) जैसी बीमारियों कॉरपोरेट कर्मचारियों में आम है.


रिपोर्ट में बताया गया, "डिप्रेशन, थकान, और नींद विकार ऐसी स्थितियां और जोखिम है, जो अक्सर पुरानी बीमारियों से जुड़ी होती है और उत्पादकता पर सबसे बड़ा प्रभाव डालती है."