नई दिल्ली: दिल्ली से सटे गुरुग्राम के बड़े अस्पताल फोर्टिस में डेंगू का इलाज कराने पहुंची सात साल की आद्या जिंदगी की जंग हार गई. बच्ची की मौत के बात उसकी मां ने जो बताया उसे जान हर किसी के होश उड़ गए. अस्पताल ने 15 दिन के इलाज के बाद बच्ची के इलाज का बिल 16 लाख रुपये बताया. बच्ची की मां ने बताया कि असपता ने उससे बच्ची के कफन के 700 रुपये भी बिल में जोड़ दिए.
सिर्फ आद्या के परिवार की कहानी नहीं
यह कहानी सिर्फ आद्या के परिवार की नहीं है, ऐसे ना जाने कितने परिवार महंगे इलाज के बोझ तले दबे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि महंगे इलाज वाली लूट के कारण 32% लोग हर साल गरीबी रेखा के नीचे पहुंच जाते हैं.
डॉक्टर मरीज को औसतन 2 मिनट भी नहीं देखता
इतना ही नहीं बीते 10 साल के भीतर अस्पतालों में इलाज का खर्च 185 फीसदी बढ़ चुका है. स्वास्थ्य मंत्रालय ही बताता है कि महंगे इलाज के कारण हर साल 6,30,00000 लोग गरीब हो जाते हैं. स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगता है कि देश में डॉक्टर एक मरीज को औसत 2 मिनट भी देखने का वक्त नहीं दे पाते है.
अस्पताल में भर्ती होने का खर्च बढ़ा
बीते दस साल की बात की जाए तो जहां शहरी मरीजों के लिए अस्पताल में भर्ती होने का औसत खर्च 176 फीसदी बढ़ चुका है. वहीं पिछले दस साल में ग्रामीण मरीजों के लिए इलाज का खर्च भू 160 फीसदी बढ़ चुका है.
ये आंकड़े बताते हैं कितनी भयावह स्थिति है
तस्वीर इतनी भयावह है कि भारत में जहां 130 करोड़ आबादी के लिए सिर्फ 10 लाख एलोपैथिक डॉक्टर हैं. नियम है कि प्रति हजार लोगों के लिए एक डॉक्टर होना चाहिए. वहां भारत में 1400 लोगों के लिए एक डॉक्टर मौजूद है. देश के 10 लाख में से एक लाख 10 हजार डॉक्टर ही सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे हैं. यानी देश के गांवों में रहने वाली 80 करोड़ आबादी मुट्ठी भर डॉक्टरों के भरोसे है.
कौन सा देश कितना खर्च कर रहा?
सरकार देश में जनता के स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति 1411 रुपए खर्च करती है. जबकि चीन में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च 15 हजार रुपए है. भारत में प्रति व्यक्ति जो 1411 रुपए खर्च होते भी हैं, उनका भी बड़ा हिस्सा डॉक्टरों के वेतन, अस्पतालों के रखरखाव पर चला जाता है. एक सरकारी अस्पताल में इलाज का आम आदमी के लिए औसत खर्च 6,120 रुपए पड़ता है. जो वो खुद उठाता है.
कैसे लूट को अंजाम दे रहा 'मेडिकल माफिया'?
देश में बड़ी बीमारी के नाम पर मेडिकल लूट को अंजाम इसलिए दिए जा पाता है क्योंकि देश में बीमारियों के छोटे होने पर ही वक्त रहते सही नहीं किया जा पाता. देश के प्राइमरी हेल्थ सेंटर का बुनियादी ढांचा इतना कमजोर है कि बीमारियों को शुरुआत स्टेज पर ही नियंत्रण करने की व्यवस्था नहीं होती. इलाज महंगा तब होता है, जब बीमारी बिगड़ जाती है. और एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रिटेंनटिव मॉडल अपनाकर 80 फीसदी बीमारियों को कम खर्च में सही किया जा सकता है.