रेटिना (Retina) की बीमारी को मेडिकल साइंस की भाषा में रेटिनल वेन ऑक्लूजन (आरवीओ) के नाम से जाना जाता है. इस बीमारी में रेटिना की छोटी नसें जो आंख के पतली परत में होती है वह धीरे-धीरे सिकुड़ने लगती है. जिसकी वजह से किसी भी चीज को देखने में दिक्कत होती है. साथ ही साथ आंख से संबंधित कई तरह की समस्याएं होती हैं. IANS की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनकी उम्र 40 साल से कम है लेकिन वह इस बीमारी से जूझ रहे हैं. आरवीओ के शुरुआती लक्षण होते हैं- किसी भी चीज को देखने में दिक्कत होना, रंग ठीक से नहीं पहचान पाना और ब्लाइंड स्पॉट और फ्लोटर्स शामिल हैं.
इस बीमारी में इंजेक्शन के मुकाबले आई ड्रॉप है मददगार
इस बीमारी का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि यह बीमारी किस स्टेज पर पहुंच चुकी है. इसके इलाज के कई तरीके हैं जैसे- लेजर सर्जरी, इंजेक्शन और दवाएं. व्यक्तिगत मामले के आधार पर आरवीओ होने का कारण खराब लाइफस्टाइल के कारण हो सकता है. और अगर इससे बचना भी है तो लाइफस्टाइल में खासा सुधार करना होगा.हालांकि आरवीओ का कोई इलाज नहीं है. अगर इस बीमारी से तुरंत आराम चाहिए तो इसका बस एक ही विकल्प है कि आपको अपनी लाइफस्टाइल में सुधार करना होगा.
हालांकि, ऑनलाइन पॉर्टल 'फ्रंटियर्स इन न्यूरोसाइंस' में पब्लिश एक हालिया रिसर्च में खुलासा किया गया है कि इंजेक्शन के बदले अगर इस बीमारी में आई ड्रॉप का इस्तेमाल किया जाए तो वो ज्यादा प्रभावी हो सकता है. यह रिसर्च चूहा पर किया गया था जिसमें पाया गया कि आई ड्राॉप रेटिना के नसें में सूजन को कम करने और ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करने में बेहद सहायक है. आरवीओ के इलाज के दौरान एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर अवरोधक (एंटी-वीईजीएफ) की इंजेक्शन दी जाती है. जो रेटिना के अंदर का सूजन कम करता है. इस पूरी थेरेपी में खराब ब्लड ब्लड सर्कुलेशन के कारण रेटिना में जो खराबी होती है उसे ठीक करने की कोशिश की जाती है.
इंजेक्शन के साइड इफेक्ट्स
कोलंबिया यूनिवर्सिटी वैगेलोस कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन में पैथोलॉजी और सेल बायोलॉजी और न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर कैरोल एम. ट्रॉय ने कहा, "एंटी-वीईजीएफ थेरेपी ने आरवीओ वाले बहुत से लोगों की मदद की है. लेकिन दूसरी तरफ इस इंजेक्शन के कई सारे साइड इफेक्ट्स हैं क्योंकि इसमें रेटिना खराब होने के चांसेस बढ़ जाते हैं. या रेटिना पूरी तरह से खराब हो जाती है.
इस बीमारी में इन दिनों एक नई आई ड्रॉप्स इस्तेमाल किया जा रहा है.जो रेटिना में न्यूरॉन्स (फोटोरिसेप्टर) को समय के साथ खराब होने से रोका है और वह कई लोगों की रोशनी वापस लाने में कामयाब भी हुई है. वहीं इंजेक्शन का इस बीमारी में कोई खास असर नहीं दिखा है. इस बीमारी में एक दवा जो अक्सर मरीज को दी जाती है वह है कैसपेज़-9. यह दवा एक एंजाइम की तरह काम करती है जो मरे हुए टिश्यूज को वापस से जिंदा करती है और ब्लड सर्कुलेशन ठीक करने में मदद करती है.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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