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हर साल बच जाएगी 11 करोड़ जानवरों की जान, मेडिकल रिसर्च की दुनिया में होने वाला है क्रांतिकारी बदलाव
पेटा (Peta) के मुताबिक हर साल लगभग 10 से 11 करोड़ जानवर मेडिकल रिसर्च के नाम पर मार दिए जाते हैं.
![हर साल बच जाएगी 11 करोड़ जानवरों की जान, मेडिकल रिसर्च की दुनिया में होने वाला है क्रांतिकारी बदलाव FDA no longer needs to require animal tests before human drug trials हर साल बच जाएगी 11 करोड़ जानवरों की जान, मेडिकल रिसर्च की दुनिया में होने वाला है क्रांतिकारी बदलाव](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/841573a36c184120e7e8b77337e1d0e31675848485587593_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
पेटा (Peta) के मुताबिक हर साल लगभग 10 से 11 करोड़ जानवर मेडिकल रिसर्च के नाम पर मार दिए जाते हैं. इन जानवरों में चूहे, मेंढक, कुत्ते, बिल्लियां, खरगोश, हैम्स्टर, गिनी सुअर, बंदर, मछली और पक्षी शामिल होते हैं. इन पर दवाओं, खूबसूरती वाले प्रोडक्ट बनाने के लिए रिसर्च होती है. इन जानवरों को मौत से पहले जहरीले धुएं में सांस लेने के लिए मजबूर किया जाता है. कइयों को घंटों तक लैब में केमिकल के साथ कैद करके रखा जाता है.
दवाई बनाने में जानवर की दी जाती है बली
इन प्रयोगों के दौरान कई जानवरों की खोपड़ी में छेद किए जाते हैं. काफी जानवरों की स्किन जल जाती है या उनकी रीढ़ की हड्डी टूट जाती है. इन प्रयोगों के लिए इन्हें खरीदा जाता है. असहनीय पीड़ा दी जाती है. हालांकि, रिसर्च में यूज होने वाले इन जानवरों को लेकर काफी समय से विरोध चल रहा था. द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में छपे एक लेख में, शोधकर्ताओं ने पाया कि जानवरों पर होने वाले ये प्रयोग बहुत कम ही लोगों के लिए सफल होते हैं.
साल 2022 के अंत में राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा 'अमेरिकी फूड एवं ड्रग्स एडमीनिस्ट्रेशन' (एफडीए) कानून लागू किए गए हैं. इस कानून के अंतर्गत अब दवाई बनाने के वक्त जानवर की बली नहीं दी जाएगी.आपकी जानकारी के लिए बता दें 80 से अधिक सालों से दवा बनाने के दौरान जानवर की बली दी जाती है. यह बहुत बड़ा है, तमारा ड्रेक, 'सेंटर फॉर ए ह्यूमेन इकोनॉमी' में अनुसंधान और नियामक नीति के निदेशक, एक गैर-लाभकारी पशु कल्याण संगठन और कानून के प्रमुख चालक कहते हैं. यह दवाई इंडस्ट्री के लिए एक जीत है. यह इलाज की जरूरत वाले मरीजों के लिए एक जीत है."
1938 के नियम के दौरान जानवर की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है
1938 की इस शर्त के स्थान पर कि जानवरों में सुरक्षा और प्रभावकारिता के लिए संभावित दवाओं का परीक्षण किया जाना चाहिए, कानून एफडीए को अनुमति देता है कि वह जानवरों या गैर-पशु परीक्षणों के बाद मानव परीक्षणों के लिए एक दवा या बायोलॉजिक-एक बड़ा अणु जैसे एंटीबॉडी-को बढ़ावा दे. ड्रेक का समूह और गैर-लाभकारी एनिमल वेलनेस एक्शन, अन्य लोगों के बीच, जिन्होंने परिवर्तन के लिए जोर दिया, का तर्क है कि मानव परीक्षणों के लिए दवाओं को साफ़ करने में एजेंसी को कंप्यूटर मॉडलिंग, ऑर्गन चिप्स और अन्य गैर-पशु तरीकों पर अधिक भरोसा करना चाहिए जो अतीत में विकसित किए गए हैं.
इंसानों की दवा बनने वाले एक्सपेरिमेंट में जानवरों को काफी ज्यादा हानि पहुंचती है
संयुक्त राज्य अमेरिका में एक दवा बनाने के लिए एफडीए को आमतौर पर एक चूहा, एक बंदर या एक कुत्ते पर एक्सपेरिमेंट किया जाता है कंपनियां हर साल ऐसे एक्सपेरिमेंट के लिए हजारों जानवरों का इस्तेमाल करती हैं. फिर भी इंसानों के लिए बनने वाली दवाओं के एक्सपेरिमेंट में 10 में से नौ से अधिक दवाएं विफल हो जाती हैं क्योंकि वे असुरक्षित या अप्रभावी होती हैं. ऐसे एक्सपेरिमेंट के लेकर लोगों का कहना है कि इससे समय, पैसा और जानवरों की काफी ज्यादा हानि होती है.
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