खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट की मात्रा FSSAI ने घटाई, जानिए सेहत के लिए फायदेमंद है या नुकसान?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, करीब 5.4 लाख मौत हर साल दुनिया भर में ट्रांस फैट्टी एसिड के सेवन से होती है. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने खाद्य पदार्थों के ट्रांस फैट लेवल में कटौती की है. उसने एक संशोधन के जरिए ट्रांस फैट्टी एसिड की नई मात्रा 5 फीसद से घटाकर 3 फीसद कर दिया है.
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने खाद्य पदार्थों के ट्रांस फैट लेवल में कटौती की है. उसने एक संशोधन के जरिए ट्रांस फैट्टी एसिड की नई मात्रा 5 फीसद से घटाकर 3 फीसद कर दिया है. नया विनियमन तत्काल रूप से प्रभावी हो गया है. FSSAI ने 2021 के लिए ऑयल और फैट्स में ट्रांस फैट्टी एसिड की मात्रा कम करने के लिए एक साल पहले मसविदा पेश किया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, करीब 5.4 लाख मौत हर साल दुनिया भर में ट्रांस फैट्टी एसिड के सेवन से होती है.
क्या कहता है FSSAI का नया नोटिफिकेशन?
नोटिफिकेशन के मुताबिक, 1 जनवरी 2021 से तेल और फैट में ट्रांस फैट एसिड की अधिकतम सीमा वजन में 3 फीसदी से ज्यादा नहीं होगी. साल 2022 तक 5 फीसद की वर्तमान अनुमानित सीमा को 2 फीसद करने पर मंथन जारी है. हालांकि नया नियम तत्काल रूप से प्रभावी हो गया है. इससे पहले औद्योगिक संगठनों से 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ चलने का आह्वान किया गया था. 2011 में भारत में पहली बार विनियमन पास किया गया था. उसमें तेल और फैट्स में ट्रांस फैट्टी एसिड की मात्रा को 10 फीसद करने का लक्ष्य रखा गया था. उसके बाद चरणबद्ध तरीके से मात्रा को 2015 में घटाकर 5 फीसद करने की मंशा जताई गई.
ट्रांस फैट्टी एसिड क्यों है सेहत के लिए नुकसानदेह
FSSAI ने इस सिलसिले में नया संशोधन 29 दिसंबर को अधिसूचित किया. एक साल पहले मामले से जुड़े पक्षकारों की सलाह के लिए बिल पेश किया गया था. संशोधित विनियमन खानेवाले रिफाइन तेल, वनस्पति, मार्जरीन और अन्य कूकिंग के माध्यमों पर लागू होगा. आपको बता दें कि ट्रांस फैट्स से हार्ट अटैक और कोरोनरी आर्टरी डिजीज से मौत का ज्यादा खतरा रहता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खतरे को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रांस फैट्स को 2023 तक उन्मूलन की मांग की है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, ट्रांस फैट या ट्रांस-फैट्टी एसिड अनसैचुरेटेड फैट्टी एसिड होते हैं जो या तो प्राकृतिक या औद्योगिक स्रोत से मिलते हैं.
प्राकृतिक तौर पर ट्रांस फैट गाय और भेड़ से मिलता है जबकि औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट औद्योगिक प्रक्रिया के तहत तैयार होते हैं. ज्यादा ट्रांस फैट्स खानेवालों में सी रिएक्टिव प्रोटीन का ज्यादा उच्च लेवल पाया जाता है. इसका मतलब हुआ कि जब भी शरीर में कहीं सूजन होगा, इस प्रोटीन के खून में बढ़ने की आशंका हो जाएगी. इसके अलावा, ट्रांस फैट का सेवन खराब याद्दाश्त और डिमेंशिया के ज्यादा खतरे से भी जुड़ा है.
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