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हीमोफीलिया का इलाज जीन थेरेपी से मुमकिन है? जानें इस बीमारी के लक्षण और कारण

हीमाफीलिया खून से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है. दरअसल, इस बीमारी में अगर किसी व्यक्ति को ब्लीडिंग होना शुरू हो जाए तो फिर रुकती नहीं है. यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है.

हीमाफीलिया खून से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है. दरअसल, इस बीमारी में अगर किसी व्यक्ति को ब्लीडिंग होना शुरू हो जाए तो फिर रुकती नहीं है. अगर यह बीमारी किसी व्यक्ति को हो जाए तो उसका ब्लड जल्दी क्लॉट नहीं होता है.  हीमोफीलिया बी जमावट कारक IX के जीन में उत्परिवर्तन के कारण होता है. यह एक प्रोटीन है जो रक्त को जमने में मदद करता है. कारक IX के गायब या कम स्तर वाले लोगों को स्वस्थ लोगों की तुलना में अधिक समय तक रक्तस्राव होता है.

जबकि विकार के हल्के रूप वाले लोगों को चोट लगने के बाद ही अत्यधिक रक्तस्राव होता है. लगभग 40-50% रोगियों में अधिक गंभीर रूप होता है जो सहज आंतरिक रक्तस्राव का कारण बनता है. जिससे गंभीर संयुक्त क्षति और यहां तक ​​कि मृत्यु भी हो सकती है. गंभीर हीमोफीलिया बी वाले लोगों के लिए प्राथमिक उपचार उनके पूरे जीवन के लिए हर 3 से 4 दिनों में कारक IX का इंजेक्शन है. जो अक्सर काफी लंबा और महंगा इलाज होता है.

जीन थेरेपी के जरिए हीमोफीलिया का इलाज

सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटल, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और रॉयल फ्री हॉस्पिटल के शोधकर्ता इस बीमारी के इलाज के लिए जीन थेरेपी की तरफ इशारा किया है.  यह दृष्टिकोण उन वायरस का लाभ उठाता है जो मनुष्यों को संक्रमित करते हैं लेकिन बीमारी का कारण नहीं बनते हैं, जिन्हें वेक्टर कहा जाता है. जब मानव कारक IX जीन को इन वेक्टर में डाला जाता है. तो वायरस जीन को उन कोशिकाओं में पहुंचाते हैं जिन्हें वे संक्रमित करते हैं. फिर कोशिकाएं कार्यात्मक प्रोटीन बनाती हैं. पिछले अध्ययनों में मानव कारक IX का उत्पादन करने वाली यकृत कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए ऐसे वेक्टर का उपयोग करके कुछ सफलता मिली थी. हालांकि, कारक IX की स्थिर दीर्घकालिक अभिव्यक्ति प्राप्त करना एक चुनौती थी. क्योंकि इससे यकृत विषाक्तता जटिल हो गई थी.

एक नए रिसर्च के मुताबिक हाल ही में जीन थेरेपी के लिए विकसित एक बेहतर वेक्टर में मानव कारक IX जीन डाला. जिसे एडेनो-एसोसिएटेड वायरस सीरोटाइप 8 (AAV8) कहा जाता है. अध्ययन में 22 से 64 साल की आयु के दस पुरुषों ने भाग लिया. दो को परिधीय शिरा के माध्यम से वेक्टर की कम खुराक दी गई. 2 को मध्यम खुराक और 6 को उच्च खुराक दी गई. अध्ययन को NIH के दिल, फेफड़े और रक्त संस्थान (NHLBI) द्वारा आंशिक रूप से समर्थन दिया गया था. परिणाम 20 नवंबर, 2014 को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए.

संशोधित जीन थेरेपी प्राप्त करने के 4 महीने के भीतर, रोगियों के रक्त में कारक IX गतिविधि का स्तर सामान्य से 1% से कम से बढ़कर सामान्य से 1% और 6% के बीच हो गया. जिन लोगों को वेक्टर की अधिक खुराक दी गई. उनमें थक्के बनाने वाले प्रोटीन का उच्च स्तर उत्पन्न हुआ. उच्च खुराक के कारण रक्तस्राव की घटनाओं में पर्याप्त कमी आई और साथ ही कारक IX के साथ उपचार की कम आवश्यकता हुई.

ये सुधार पूरी निगरानी अवधि तक चले. जो कुछ प्रतिभागियों के लिए 4 साल तक थी. साइड इफ़ेक्ट हल्के थे. सबसे आम प्रतिकूल प्रभाव, जो वायरस की उच्च खुराक प्राप्त करने वाले 6 में से 4 पुरुषों में देखा गया. वह था लीवर एंजाइम के स्तर में वृद्धि. जो लीवर की सूजन का संकेत है जिसका आसानी से इलाज किया जा सकता है.

क्या होता है हीमोफीलिया

हीमोफीलिया एक ब्लड डिसऑर्डर है. इसमें ब्लड क्लॉट नहीं होता है. इसमें खतरा रहता है कि अगर एक बार चोट या कट जाए तो फिर ब्लड निकलना शुरू होगा तो रूकेगा नहीं. अगर किसी व्यक्ति को यह बीमारी है यानि उसके शरीर में वह खासी प्रोटीन नहीं है जो ब्लड के थक्के को बनाती है. ब्लड को क्लॉट करने वाले प्रोटीन जो प्लेटलेट्स के साथ मिलाकर ब्लड के थक्के जमाती है वह होती ही नहीं है. जिसके कारण ब्लड बिना रूके निकलने लगता है. 

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सबसे हैरानी की बात यह है कि हीमोफीलिया के मरीजों की संख्या के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है. भारत में इसके करीब 1.3 लाख मरीज हैं. 

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किन लोगों में होती है यह समस्या

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लड़कियों के मुकाबले यह समस्या लड़कों में ज्यादा होती है. लड़कों में होने वाले एक्स क्रोमोजोम एक होता है. अगर मां से खराब क्रोमोजोम बच्चे में आ जाए तो बच्चे में यह बीमारी पनपने लगती है. लड़कियों में एक्‍स क्रोमोजोम 2 होते हैं ऐसी स्थिति में उनमें यह बीमारी होने की संभावना कम होती है. 

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें. 

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