ब्राजील में वैज्ञानिकों ने डेंगू और जीका वायरस की पहचान के लिए नए किस्म की तकनीक विकसित की है. सोने से बने नैनो सेंसर की बदौलत आसानी और सटीक तरीके से जीका वायरस और डेंगू का पता लगाया जा सकेगा.


डेंगू और जीका की नई तकनीक से होगी पहचान


'साइंटिफिक रिपोर्ट्स' में प्रकाशित शोध में नैनो कणों के बनाने का दावा किया गया है. जिसके मुताबिक सोने के नैनो कण किसी भी वायरस को एटमी या मॉलिक्यूलर पैमाने पर पहचान करने की क्षमता रखता है. ब्राजील की यूनिवर्सिटी ऑफ मेनास गेरेस (University of Minas Gerais) के वैज्ञानिकों ने बताया कि डेंगू के खिलाफ एंटी बॉडीज की पहचान करनेवाला सीरोलोजिक टेस्ट जीका उत्पादित एंटी बॉडीज का भी पता बता देगा. नैनो सेंसर के लिए महंगे केमिकल और एलिसा टेस्ट की जरूरत नहीं होती है.


वैज्ञानिकों ने सोने से बनाया नैनो सेंसर


डेंगू की बीमारी से मौत होने की आशंका रहती है तो वहीं जीका वायरस गर्भवती महिलाओं के गर्भाशय पर हमला करता  है. इसीलिए दोनों बीमारियों की वक्त पर और सटीक जानकारी का होना बहुत जरूरी होता है. वैज्ञानिकों ने बताया कि नैनो कणों का टेस्ट पारंपरिक रूप के मुकाबले काफी संवेदनशील है और कम लागत वाले सेंसर को तैयार करना बहुत आसान है. मगर हर तरह के लोगों को इसकी इजाजत नहीं है. अलबत्ता विशेषज्ञों को हिदायत और ट्रेनिंग मुहैया कराई जा रही है.


दरअसल वैज्ञानिकों ने ट्रायल के दौरान चारों किस्म के डेंगू वायरस के लिए चार तरह के नैनो अणुओं को तैयार किया और हर एक को संबंधित डेंगू प्रोटीन से ढांका गया. उसके बाद उन्होंने एलिसा सिरम तकनीक से खून के नमूनों का अध्ययन किया. इस दौरान उन्होंने नोट किया कि चारों में हर तरह के डेंगू ने सोने के नैनो अणुओं को अव्यवस्थित कर दिया. इस बिना पर डेंगू की हर किस्म की पहचान बहुत आसान हो गई. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर में सालाना 10 करोड़ से 40 करोड़ लोग डेंगू से प्रभावित होते हैं. ब्राजील को एक साथ डेंगू और जीका का सामना करना पड़ रहा है. ये दोनों वायरस फ्लेविरिडाए (Flaviviridae) परिवार से संबंध रखते हैं और अगर इमिनो एसिड की सतह पर देखा जाए तो उनमें 50 फीसद तक समानता होती है.


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