नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई रुकने से 36 मासूमों की मौत हो गई है. बताया जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज में दो दिन के भीतर 36 बच्चों की मौत की वजह अचानक 10 अगस्त की शाम ऑक्सीजन सप्लाई का रुक जाना है. ऐसे में एबीपी न्‍यूज़ ने नियो नेटल और पीडिऐट्रिक डॉ. करण रहेजा से बात की और जाना कि आखिर एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम क्या है और इससे ग्रसित बच्‍चों को ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई मिलने पर क्‍या-क्‍या हो सकता है?


सबसे पहले तो जानते हैं कि क्या होता है एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम यानी एईएस-
डॉ. करण का कहना है कि एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम आमतौर पर ब्रेन के इंफेक्शन के तौर पर जाना जाता है यानि ब्रेन में सूजन. ये मुख्यतौर पर ब्रेन के बाहरी हिस्से को प्रभावित करता है. इसके होने के कई कारण है. मुख्यतौर पर देखें तो वायरल इसके होने का सबसे बड़ा कारण है. इसके अलावा बहुत तरह के वायरस होते हैं जैसे एंट्रोवायरस, अर्बो वायरस, और हर्पिस जिनकी वजह से ब्रेन में सूजन आ जाती है. ब्रेन की सूजन की वजह से बच्चों को दौरा पड़ जाता है या बच्चा कोमा में चला जाता है. ऐसे में कुछ सिचुएशंस में बच्चों को वेटिंलेटर पर रखा जाता है. बच्चों को वेटिंलेटर पर ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं मिलेगी तो बच्चे की हालत बहुत बिगड़ जाती है.


बच्चों को कब होती है ऑक्सीजन की जरूरत-
डॉ. करण का कहना है कि जब भी बच्चा एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम से ग्रसित होता है तो उसके पीछे कोई ना कोई बीमारी छिपी होती है. बच्‍चे को या तो दौरा आया होगा या फिर बच्चा बेहोश होगा. कई बार बच्चे जाग रहे होते हैं लेकिन सामान्य तरीके से बिहेव नहीं करते. बच्चे का माइंड एक्टिव नहीं होता.दौरे वाले बच्चों को पहले से ही ऑक्सीजन की कमी होती है. कई बच्चों में देखा गया है कि वे ठीक से सांस नहीं लेते तो उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है.


ऑक्सीजन एक ऐसी थेरपी है जिसकी दिमाग को तकरीबन 20 प्रति‍शत तक सप्लाई चाहिए होती है. अगर 30 से 180 सेकेंड तक बच्चे को ऑक्‍सीजन नहीं मिलती तो वो बेहोश हो जाता है. अगर 1 मिनट तक बच्चे को ऑक्सीजन नहीं मिलती तो उसके ब्रेन में खून की कमी वाले बदलाव देखने को मिल जाएंगे. 3 मिनट तक ऑक्सीजन नहीं मिलती तो दिमाग के सेल्स जिनका न्यूरोंस कहते हैं, तो वो मरने शुरू हो जाते हैं. अगर 5 मिनट तक बीमार बच्चे को ऑक्सीजन की सप्लाई ना मिले तो उनका ब्रेन डैमेज हो जाता है. अगर ऐसी सिचुएशन में वे किसी तरह बच भी गए तो वे हमेशा के लिए कोमा में चले जाते हैं. या उन्हें कोई क्रोनिक डिजीज़ हो सकती है.


इसके अलावा माइल्ड निमोनिया में भी बच्चे को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. इन्सेफेलाइटिस से ग्रसित बच्चे में ऑक्सीजन की मात्रा वैसे भी कम हो जाती है. कई बच्चों को पैदाइशी बीमारियां होती है जैसे रेस्पिरेटरी डिट्रेस सिंड्रोम. प्रीमैच्योर बच्चों को भी सांस की बहुत दिक्कत होती है. ऐसे बच्चों को ऑक्सीजन की बहुत जरूरत होती है. बर्थ ऐस्फिक्सिया जिसमें बच्चे को पैदा होने में दिक्कत आती है. इस सिचुएशन में भी बच्चे को आर्टिफिशियल ऑक्सीजन देनी पड़ती है. कई बार बच्चे को इंफेक्शन फैल गया. उसका इफेक्ट सांस, हार्ट और बीपी पर पड़ता है. ऐसे में ऑक्सीजन थेरेपी दी जाती है. ऐसे में बॉडी में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ जाती है.


किसी को भी हो सकती है ये बीमारी-
डॉ. का कहना है कि ऐसा नहीं है कि ये सिंड्रोम बच्चों को ही होता है. ये व्यस्कों को भी होता है लेकिन उनमें कम होता है क्योंकि उनकी इम्यूनिटी बढ़ जाती है. इतना ही नहीं, ये बीमारी रूरल और अर्बन दोनेां ही क्लास में पाई जाती है. अर्बन क्लास में हर्पिस और एंट्रोवायरस की वजह से इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम अधिक होता है.


इस बीमारी का पता लगाने के लिए सबसे जरूरी ये पता लगाना है कि ये किस वायरस की वजह से हुआ है. जैसे जैपनीज़ इन्सेफेलाइटिस के लिए वैक्सीनेशन उपलब्ध है.


क्या कारण है इस एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम के-
कईयों बच्चों की इम्यूनिटी वीक होती है तो कईयों को इम्यूनो डेफिशिएंसी होती है. उन्हें इस सिंड्रोम का रिस्क ज्यादा रहता है. दरअसल, इंसान की बॉडी में कुछ ऐसे गुड ब्लड सेल्स होते हैं जो कि बीमारियों से लड़ने की क्षमता रखते हैं.
 
किन वायरस की वजह से होता है इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रोम-
एंट्रोवायरस, अर्बो वायरस, हर्पिस, जैपनीज़ इन्सेफेलाइटिस वायरस, डेंगू और चिकनगुनिया भी इस सिंड्रोम का कारण बन सकते हैं.


इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम के लक्षण-
इस सिंड्रोम के होने पर सिरदर्द, बुखार, हैलुसिनेशंस, चक्कर आना और कुछ मामलों में तो ब्रेन डैमेज हो जाता है. दौरा पड़ने लगता है. कोमा का खतरा भी रहता है.


कैसे पहचान होती है इन्सेफेलाइटिस की-
इन्सेफेलाइटिस को डायग्नोस करने के लिए रीढ़ की हड्डी से फल्यूड लिया जाता है और बैक्टीरिया या वायरस के टाइप की जांच की जाती है, कुछ मामलों में सीटी स्कैन किया जाता है और कुछ में एमआरआई की भी आवश्यकता पड़ सकती है.


इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम का इलाज-
बैक्टीरिया द्वारा इंफेक्शन के मामले में इसके इलाज के लिए स्ट्रॉग एंटीबायोटिक्स लेनी पड़ती है. कभी-कभी इलाज के लिए सर्जरी की भी आवश्यक हो सकती है. अगर किसी को साँस लेने में परेशानी हो, तब वेंटिलेटर सपोर्ट की ज़रूरत पड़ सकती है.


असम में सबसे ज्यादा होती है ये-
आंकडों के मुताबिक, भारत में देखा गया है कि इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की संख्या असम में सबसे ज़यादा है जहां 80% लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं.


ऐसे में डॉ. करण का कहना है कि गोरखपुर में ऑक्सीजन की सप्लाई ना होने से बच्चों की मौत नहीं हुई बल्कि बच्चों को गंभीर बीमारियां होंगी जिसकी वजह से उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत थी और सही समय पर ऑक्सीजन ना मिलने पर उनकी डेथ हुई है.


नोट: ये एक्सपर्ट के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर या एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.