थायराइड की समस्या आजकल महिलाओं में आम होती जा रही है. यह समस्या शरीर में हार्मोनल असंतुलन की वजह से होती है, जिसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है. खासकर, जब आप प्रेग्नेंसी प्लान कर रही होती हैं, तो थायराइड की स्थिति को समझना और संभालना बेहद जरूरी हो जाता है. 


थायराइड और प्रेग्नेंसी का कनेक्शन
थायराइड हार्मोन का स्तर अगर सामान्य न हो, तो यह आपकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है. इसका मतलब है कि अगर आपके शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी या अधिकता है, तो आपको गर्भधारण में परेशानी होती इसके अलावा, प्रेग्नेंसी के दौरान भी थायराइड का सही स्तर बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि यह मां और बच्चे दोनों के हेल्थ पर असर डालता है. 


किस उम्र तक करें प्लान?
अगर आपको थायराइड की समस्या है, तो डॉक्टरों का मानना है कि 30-35 साल की उम्र तक प्रेग्नेंसी प्लान करना बेहतर होता है. इस उम्र के बाद प्रेग्नेंसी में कुछ कॉम्प्लिकेशन्स होने का खतरा बढ़ जाता है, जैसे कि गर्भपात, प्री-मैच्योर डिलीवरी, और शिशु के विकास में समस्याएं. 


देर से प्रेग्नेंसी के खतरे
अगर आप 35 साल की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी प्लान कर रही हैं और आपको थायराइड की समस्या है, तो आपको कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए. इस उम्र में प्रेग्नेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और दूसरी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है. ये मां और बच्चे दोनों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. साथ ही, बच्चे के विकास में भी परेशानी हो सकती है. इसलिए, डॉक्टर की सलाह से दवाइयां लें, रोजाना जांच कराएं, और अपने खानपान व लाइफस्टाइल का खास ख्याल रखें, ताकि आपकी प्रेग्नेंसी सुरक्षित और स्वस्थ रहे. 


क्या करें?



  • रोजाना जांच कराएं: थायराइड की समस्या होने पर नियमित जांच कराते रहें और डॉक्टर की सलाह से ही दवाइयों का सेवन करें. 

  • बैलेंस डाइट लें: अपने आहार में हरी सब्जियां, फल, और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ शामिल करें. आयोडीन युक्त भोजन का सेवन करें, लेकिन ज्यादा नहीं. 

  • स्ट्रेस कम करें: तनाव से बचें और योग या ध्यान करें, ताकि आपका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर रहे.

  • थायराइड की समस्या के बावजूद सही समय पर और सही तैयारी के साथ प्रेग्नेंसी प्लान की जा सकती है.


थायराइड होने पर बच्चों में ये कमियां आ सकती हैं 



  • मानसिक विकास में कमी: बच्चे का मानसिक विकास धीमा हो सकता है.

  • शारीरिक विकास में देरी: बच्चे का कद और वजन सामान्य से कम हो सकता है.

  • सीखने में कठिनाई: बच्चे को पढ़ाई और समझने में दिक्कत हो सकती है.

  • कमजोर इम्यून सिस्टम: बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है.

  • जन्मजात दोष: बच्चे में जन्म के समय ही कुछ शारीरिक या मानसिक विकृतियां हो सकती हैं. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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