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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
न्यूट्रिशंस से भरपूर है कुट्टू का आटा
नई दिल्लीः नवरात्र तन, मन और आत्मा को स्वच्छ करने का मौका होता है. इस दौरान गेहूं का आटा नहीं, कुट्टू का आटा खाया जाता है. कुट्टू का आटा अनाज नहीं, बल्कि फल से बनता है और अनाज का बेहतर विकल्प होने के साथ पौष्टिक तत्वों भरपूर भी होता है.
कुट्टू के आटे के फायदों के बारे में आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया कि कुट्टू का आटा प्रोटीन से भरपूर होता है और जिन्हें गेहूं से एलर्जी हो, उनके लिए बेहतरीन विकल्प है. इसमें मैग्नीशियम, विटामिन-बी, आयरन, कैल्शियम, फॉलेट, जिंक, कॉपर, मैग्नीज और फासफोरस भरपूर मात्रा में होता है. इसमें फाइटोन्यूट्रिएंट रूटीन भी होता है जो कोलेस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर को कम करता है. सेलियक रोग से पीड़ितों को भी इसे खाने की सलाह दी जाती है.
चूंकि कुट्टू के आटे को चबाना आसान नहीं होता, इसलिए इसे छह घंटे पहले भिगो कर रखा जाता है, फिर इन्हें नर्म बनाने के लिए पकाया जाता है, ताकि आसानी से पच सके. चूंकि इसमें ग्लूटन नहीं होता इसलिए इसे बांधने के लिए आलू का प्रयोग किया जाता है.
यह ध्यान रखें कि इसकी पूरियां बनाने के लिए हाईड्रोजेनरेट तेल या वनस्पति का प्रयोग न करें, क्यूंकि यह इसके मेडिकल तत्वों को खत्म कर देता है. इसे बनी पूरियां ज्यादा कुरकुरी होती हैं. वैसे पूरी और पकोड़े तलने की बजाय इससे बनी रोटी खाएं. कुट्टू के आटे से इडली भी बन सकती है और सामक के चावल से डोसा भी बनाया जा सकता है.
कुट्टू के आटे फायदे :
- कुट्टू 75 प्रतिशत काबोहाइड्रेट है और 25 प्रतिशत हाई क्वालिटी प्रोटीन, वजन कम करने में यह बेहतरीन मदद करता है. इसमें अल्फा लाइनोलेनिक एसिड होता है, जो एचडीएल कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है और एलडीएल को कम करता है.
- यह अघुलनशील फाइबर का अच्छा स्रोत है और गॉलब्लैडर में पत्थरी होने से बचाता है. अमेरिकन जरनल ऑफ गेस्ट्रोएनट्रोलॉजी के मुताबिक, 5 प्रतिशत ज्यादा घुलनशील फायबर लेने से गाल ब्लैडर की पत्थरी होने का खतरा 10 प्रतिशत कम हो जाता है.
- फाइबर से भरपूर और ग्लिसेमिक इंडेक्स कम होने से यह डायब्टीज वालों के लिए बेहतर विकल्प है. कुट्टू के आटे का ग्लिसेमिक इंडेक्स 47 होता है.
- कुट्टू के आटे में मौजूद चाईरो-इनोसिटोल की पहचान डायब्टीज रोकने वाले तत्व के रूप में की गई है.
- कुट्टू के आटे में मिलावट की जा सकती है और इसे विश्वसनीय स्रोत से ही खरीदना चाहिए. पिछले साल का बचा हुआ आटा भी प्रयोग नहीं करना चाहिए, इससे फूड-प्वॉयजनिंग हो सकती है.
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