नई दिल्ली: सर्दियों में अक्सर दिन की लंबाई कम होती है और इस दौरान इंसान को दिन भर में धूप की रोशनी भी कम ही मिलती है. जिसके कारण उनमें सीजनल डिप्रेशन (सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर ) या 'विंटर ब्लू' की स्थिति पैदा हो जाती है. यह डिप्रेशन साल के एक ही समय में होता है और जैसे-जैसे दिन की लंबाई कम होती है डिप्रेशन यानि अवसाद के लक्षण बढ़ते चले जाते हैं. नोएडा स्थित जेपी हॉस्पिटल के बिहेवियरल साइन्सेज के सीनियर कन्सलटेन्ट डॉ. मृणमय दास ने इस रोग के कुछ कारण बताए हैं.
* सिरकाडियन रिदम (जैविक घड़ी) : सर्दियों में धूप की रोशनी कम होना सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) का कारण बन सकता है. धूप कम मिलने से शरीर की जैविक घड़ी प्रभावित होती है और व्यक्ति डिप्रेशन के लक्षण महसूस करने लगता है.
* शरीर में सिरेटोनिन का स्तर : सिरेटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है, शरीर में इसका लेवल कम होने का असर इंसान के मूड पर पड़ता है और इंसान एसएडी का शिकार हो सकता है. विटामिन डी शरीर में सिरेटोनिन के उत्पादन में मुख्य भूमिका निभाता है. विटामिन डी की कमी से शरीर में सिरेटोनिन का लेवल गिरता है. इससे इंसान दिन में कम एनर्जी और सुस्ती महसूस करता है.
* मेलेटोनिन का स्तर : मेलेटोनिन ऐसा हॉर्मोन है जिसका असर हमारी नींद और मूड पर पड़ता है. एएसडी से पीड़ित व्यक्ति में सर्दियों में मेलेटोनिन ज्यादा बनता है. सर्दियों में अंधेरा जल्दी होता है, इसलिए दिमाग को लगता है कि सोने का समय हो गया है. इससे शरीर मेलेटोनिन का उत्पादन जल्दी शुरू हो जाता है. सर्दियों में सुबह के समय भी धूप कम रहती है इसलिए शरीर में मेलेटोनिन का स्तर ज्यादा हो जाता है और व्यक्ति दिन में भी सुस्ती महसूस करता है.
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* हाइपोथेलेमस : धूप हाइपोथेलेमस को उत्तेजित करती है, हाइपोथेलेमस दिमाग का वह हिस्सा है जो नींद, मूड और भूख पर नियत्रंण रखता है.
डॉ. मृणमय दास ने इसके जोखिम के बारे में बताते हुए कहा, "जिन लोगों के परिवार में एसएडी या डिप्रेशन से पीड़ित कोई व्यक्ति हो, उनमें इसकी संभावना अधिक होती है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में एसएडी के मामले ज्यादा पाए जाते हैं. इसके अलावा बुजुर्गो के बजाए युवाओं में इसकी संभावना अधिक होती है. मेजर डिप्रेशन या बाइपोलर डिसऑर्डर. अगर व्यक्ति को इनमें से कोई भी समस्या है तो डिप्रेशन/ अवसाद के लक्षण ज्यादा गंभीर हो सकते हैं."
एसएडी के लक्षणों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, "कम एनर्जी महसूस करना, सुस्ती या आलस महसूस करना, एकाग्रता में कमी, सोने में परेशानी, निराशा या अपराधबोध महसूस करना, आपको जो काम कभी अच्छे लगते थे, उनमें रुचि खो देना, भूख या वजन में बदलाव, लगभग रोजाना, दिन के ज्यादातर समय डिप्रेशन महसूस करना."
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एसएडी का इलाज न किया जाने पर कई समस्याएं हो सकती हैं, जिनके बारे में बताते हुए डॉ. मृणमय दास ने कहा, "स्कूल और काम में समस्याएं, आत्महत्या की सोच या व्यवहार, अपने आप को समाज से अलग या अकेला महसूस करना या नशे की आदत या बुरी लत, अन्य मानसिक समस्याएं जैसे चिंता या खाने-पीने की समस्याएं."
इसके उपचार के बारे में डॉ. मृणमय दास ने कुछ उपाय बताएं हैं, जो कि इस प्रकार हैं-
* एंटीडिप्रेसेन्ट : डिप्रेशन और कभी कभी एसएडी के गंभीर मामलों में इलाज के लिए एंटीडिप्रेसेन्ट दवाएं दी जाती हैं. सर्दियों में अगर लक्षण शुरू होने से पहले ये दवाएं शुरू कर दी जाएं तो परिणाम बेहतर हो सकते हैं. इन्हें बसंत का मौसम शुरू होने तक जारी रखना चाहिए.
* लाईट थेरेपी : 1980 के दशक से ही लाईट थेरेपी को एसएडी के लिए अच्छा इलाज माना जाता है. धूप की कमी के कारण होने वाली इस समस्या को दूर करने के लिए मरीज को कृत्रिम रोशनी दी जाती है. सुबह के समय लाईट बॉक्स के सामने बैठने से मरीज को लक्षणों में आराम मिलता है.
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* साइकोथेरेपी : सीबीटी या कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी साइकोथेरेपी का एक प्रकार है जो एसएडी के इलाज में बेहद फायदेमंद है. पारम्परिक सीबीटी का इस्तेमाल एसएडी के लिए किया जाता है. इसमें व्यक्ति के नकारात्मक सोच या विचारों को पहचाना जाता है और बिहेवियर एक्टिवेशन नामक तकनीक से उसमें सकारात्मक सोच को प्रोत्साहित किया जाता है.
* विटामिन डी : आमतौर पर सर्दियों के महीनों में प्राकृतिक रोशनी की कमी सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर का कारण बन सकती है. धूप शरीर में विटामिन डी बनाने के लिए भी जरूरी है. प्राकृतिक रोशनी से शरीर में सेरेटोनिन का स्तर बढ़ता है. यह मूड को नियमित करने वाला एक रसायन है.
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