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खांसी, जुकाम, दर्द की 3 कॉमन दवाइयां जांच के घेरे में, क्या आप भी ये लेते हैं?
1988 से पहले के कुछ एफडीसी की जांच करने के लिए 2021 में एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था, जिन्हें लाइसेंसिंग अथॉरिटी से अप्रूवल के बिना बिक्री के लिए मैन्यूफैक्चर की फ्रेश मंजूरी दी गई थी.
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सर्दी-खांसी दर्द की कॉमन दवा जांच के दायरे में
Source : Freepik
Cold Cough Medicines : खांसी, जुकाम और दर्द में अक्सर इस्तेमाल होने वाली 3 कॉमन दवाईयां जांच के घेरे में हैं. ऐसे में अगर आप भी इन दवाईयों को लेते हैं तो सावधान हो जाइए. दरअसल, सेंट्र्ल ड्रग रेगुलेटर ने 30 साल से इस्तेमाल हो रहीं सर्दी और खांसी की दो दवाईयां और दर्द की एक दवा की सुक्षा और असर का फ्रेश ट्रायल करने का आदेश दिया है. अगर आप भी जरा सा सर्दी-जुकाम या दर्द होने पर इन दवाईयों का सेवन करते हैं तो यहां जानें इन दवाईयों के नाम और पढ़ें पूरी खबर...
सर्दी-खांसी, दर्द की दवाईयों का होगा फ्रेश ट्रायल
जिन दवाईयों के फ्रेश ट्रायल की बात कही गई है, उनमें से एक में पैरासिटामोल (एंटीपायरेटिक), फिनाइलफ्राइन हाइड्रोक्लोराइड (नाक संबंधी सर्दी-खांसी की दवा) और कैफीन एनहाइड्रस (कैफीन) की दवाईयां शामिल हैं. दूसरी में कैफीन एनहाइड्रस, पेरासिटामोल, हाइड्रोक्लोराइड (सोडियम) और क्लोरफेनिरामाइन मैलेट (एलर्जी की दवा) शामिल हैं। सेंट्रल ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी (CDSCO) ने तीसरे एफडीसी पर सेफ्टी और प्रभाव का डेटा कलेक्ट करने के लिए पोस्ट-मार्केटिंग सर्विलांस की सलाह दी है. यह दर्द दूसर करने वाली दवाईयों से संबंधित है, जिसे नॉन-स्टेरायडल एंटी इंफ्लामेट्री दवाएं कहा जाता है. इसमें पैरासिटामोल, प्रोपीफेनाज़ोन (एक एनाल्जेसिक और बुखार) और कैफीन है.
दर्द की दवा को लेकर नियम
पेनकिलर को लेकर कहा गया है कि हल्के से मध्यम सिरदर्द के लिए एफडीसी के मैनुफैक्चरिंग और मार्केटिंग को इस शर्त के साथ जारी रखना है कि इसे 5 से 7 दिनों से ज्यादा नहीं लिया जाना चाहिए. बता दें कि CDSCO का निर्देश कुछ सलाहों पर बेस्ड है. 1988 से पहले के कुछ एफडीसी की जांच करने के लिए 2021 में एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था, जिन्हें लाइसेंसिंग अथॉरिटी से अप्रूवल के बिना बिक्री के लिए मैन्यूफैक्चर की फ्रेश मंजूरी दी गई थी.
FDC सेहत के लिए कितना सही
एफडीसी यानी फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन को इनके असर, कम साइड इफेक्ट्स और दवाईयों के बोझ को कम करने के लिए सही ठहराया जाता है. इंडियन जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी के एक एडोटोरियल में एम्स (All India Institute of Medical Sciences) में फार्माकोलॉजी के पूर्व चेयरमैन डॉ. वाई के गुप्ता और डॉ सुगंती एस रामचंद्र ने देश में उपलब्ध एफडीसी को 'द गुड, द बैड एंड द अग्ली' की कैटेगरी में बांटा है. गुड एफडीसी को मजबूत लोगों के तौर पर बताया गया है. जैसे- कार्बिडोपा, लेवोडोपा, सल्फोनामाइड्स और ट्राइमेथोप्रिम का कॉम्बिनेशन. 'बैड एफडीसी' में उन्हें शामिल किया गया था जो प्रमुख तौर पर मार्केटिंग के लिए तैयार किए गए थे और उनका मेडिकल में कोई यूज नहीं है. जबगि 'अग्ली एफडीसी' में उन्हें रखा गया, जिनके पास कफ सिरप वाले फॉर्मूलेशन की तरह न तो कोई एविडेंस है और ना ही कोई सैद्धांतिक महत्व है. इनमें डिकॉन्गेस्टेंट, ब्रोन्कोडायलेटर, कफ सप्रेसेंट, एक्सपेक्टोरेंट और एंटीफंगल, एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड और ओकेजनल लोकल एनेस्थेटिक के साथ दो या दो से अधिक एंटीहिस्टामाइन के साथ शामिल है।
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