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लंग या स्टमक कैंसर के बारे में तो आप जानते होंगे पर क्या कभी हार्ट कैंसर में सुना है, क्या होती है ऐसी कोई बीमारी ?
जब शरीर के किसी हिस्से की कोशिकाएं अनियंत्रित तौर पर बढ़ने लगती है,इसे ही कैंसर कहा जाता है.ये जानलेवा बीमारी है.क्योंकि किसी कैंसर के लक्षण लास्ट स्टेज में दिखाई देते हैं तो बचना मुश्किल हो जाता है.
Heart Cancer: आजतक आपने कैंसर के कई प्रकार के बारें में सुना होगा. इनमें पेट का कैंसर, लंग कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, किडनी का कैंसर, ब्लड कैंसर और सर्वाइकल कैंसर जैसे प्रकार हैं लेकिन क्या आपने कभी हार्ट कैंसर के बारें में सुना है. आपका जवाब होगा शायद नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया में हार्ट कैंसर के मामले काफी रेयर हैं. आइए जानते हैं हार्ट कैंसर (Heart Cancer) के मामले कम क्यों आते हैं...
कैंसर क्या होता है
जब शरीर के किसी हिस्से की कोशिकाएं अनियंत्रित तौर पर बढ़ने लगती है, इसे ही कैंसर कहा जाता है. यह जानलेवा बीमारी है. क्योंकि किसी कैंसर के लक्षण लास्ट स्टेज में दिखाई देते हैं तो उससे बचना मुश्किल हो जाता है. लेकिन आज समय बदल गया है और इसके इलाज आ गए हैं जिससे कैंसर को शुरुआत में ही पहचान कर उससे बचा जा सकता है.
हार्ट कैंसर क्या होता है
हार्ट कैंसर के मामले न के बराबर आते हैं, इसलिए इसके बारें में कम ही सुनने को मिलता है. 10 लाख में से कैंसर मरीजों में से सिर्फ दो मरीजों में ही हार्ट का कैंसर पाया जाता है. कुछ मरीजों में हार्ट के पास ट्यूमर बनता है तो नॉन कैंसर होता है. हार्ट में आधे से भी ज्यादा ट्यूमर मिक्सोमा होता है, जो आमतौर से हार्ट की लेफ्ट साइड होता है. ये हार्ट की दीवार की आंतरिक परत में पैदा होत् हैं, लेकिन ज्यादातर नॉन-कैंसर के कारण हैं.
हार्ट कैंसर कम क्यों होता है
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हार्ट के सभी ऑर्गन्स की तरह उसमें सेल्स तेज गति से नहीं बढ़ते हैं. जिस कारण हार्ट में कैंसर कम होता है. हार्ट की सेल्स शरीर के दूसरे ऑर्गन की सेल्स की तरह बंटती भी नहीं है, जिससे वहां कैंसर कम होने की आशंका कम होती है. हार्ट में ट्यूमर होने पर भी वह कैंसर नहीं बनता है, क्योंकि पूरी दुनिया में हार्ट कैंसर के केस न के बराबर आते हैं.
कैंसर से बचाव
कैंसर सर्जन के मुताबिक, इससे बचने के लिए सबसे जरूरी है कि खानपान का अच्छी तरह से ध्यान रखें. हर दिन एक्सरसाइज करते रहें. इसके लिए जरूरी है कि हर 6 महीने में स्क्रीनिंग करवाते रहें. अगर किसी हिस्से में कोई बीमारी ज्यादा समय से समझ आ रही है तो उसे हल्के में न लें.
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