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टाइप-1 और टाइप-2 ही नहीं इतने तरह की होती है डायबिटीज, तीसरी वाली सबसे 'खतरनाक'
आज दुनिया की ज्यादातर आबादी डायबिटीज की चपेट में है. हालांकि, इसकी जानकारी काफी कम लोगों को ही है. डायबिटीज से बचने का सबसे सही उपाय लाइफस्टाइल और खानपान में सुधार माना गया है.
Diabetes : बिगड़ती लाइफस्टाइल की वजह से डायबिटीज ने आज पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है. यह गंभीर बीमारियों में से एक मानी जाती है. कुछ लोगों का कहना है कि डायबिटीज उम्र बढ़ने के साथ ही होती है. ऐसे लोगों को सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि आजकल बच्चे भी इसका शिकार बन सकते हैं. बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) ज्यादा देखने को मिल रहा है. यही कारण है कि इससे बचने और सही खानपान की जरूरत है. आमतौर पर आपने टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज के बारें में ही सुना होगा लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि डायबिटीज के और भी प्रकार हैं. हेल्दी रहने के लिए इसकी जानकारी हर किसी के लिए जरूरी है.
टाइप-1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes)
इसे ऑटोइम्यून नाम की बीमारी भी कहते हैं. यह अग्नाशय (pancreas) को इंसुलिन बनाने से रोकने का काम करती है. इससे बॉडी की इम्यूनिटी और अग्नाशय की हेल्दी कोशिकाओं को नुकसान होने लगता है. इस वजह से इस टाइप का डायबिटीज हो सकता है. बच्चों और वयस्कों में टाइप 1 डायबिटीज का रिस्क सबसे ज्यादा होता है. इस बीमारी की चपेट में आने के बाद लाइफटाइम इंसुलिन इंजेक्शन लेना पड़ सकता है. क्योंकि शरीर में इंसुलिन हार्मोन का प्रोडक्शन नहीं हो रहा है.
टाइप-2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes)
टाइप-2 डायबिटीज सबसे ज्यादा कॉमन है. बॉडी में इंसुलिन का प्रोडक्शन कम होने या इस हार्मोन के सही इस्तेमाल न होने से यह डायबिटीज हो सकती है. यह ज्यादा रिस्की माना जाता है. इस डायबिटीज की चपेट में आने का मतलब होता है कि शरीर इंसुलिन का सही इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. यह डायबिटीज बॉडी के कई पार्ट पर निगेटिव असर डाल सकती है. दवाईयों और लाइफस्टाइल को दुरुस्त रख, इसे कंट्रोल कर सकते हैं. गंभीर स्थितियों में इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत हो सकती है.
गर्भकालीन डायबिटीज (gestational diabetes mellitus)
नाम से ही पता चलता है कि इस तरह का डायबिटीज गर्भवती महिलाओं में ज्यादा होता है. प्रेग्नेंसी में जब शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता, तब इस तरह की डायबिटीज होती है. अगर समय रहते इस पर ध्या नहीं दिया जाए तो बच्चे का ब्लड शुगर ज्यादा हो जाता है. इससे गर्भ में पल रहे बच्चे में कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. हालांकि, डिलीवरी के बाद ज्यादातर महिलाओं में यह ठीक भी हो जाता है. जबकि कुछ में लबे समय तक समस्या बनी रहती है.
टाइप 1.5 डायबिटीज (Type 1.5 Diabetes)
इस टाइप के डायबिटीज के बारें में बहुत कम लोग ही जानते हैं. यही वजह है कि इसका सही इलाज नहीं हो पाता है. इस डायबिटीज को 'लाडा' भी कहते हैं. यह टाइप 1 डायबिटीज का ही सब टाइप माना जाता है. हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, 30 साल से ज्यादा उम्र वालों में ही यह समस्या देखने को मिलती है. सबसे बड़ी बात की इसके ज्यादातर लक्षण टाइप-2 से मिलते-जुलते हैं.
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तहसीन मुनव्वरवरिष्ठ पत्रकार
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