Low BP: गर्मियों में अचानक से क्यों गिरने लगता है ब्लड प्रेशर, जानिए BP का गर्मी से है क्या कनेक्शन
गर्मियों में ब्लड प्रेशर लो होने के कई और फैक्टर्स हो सकते हैं.डिहाइड्रेशन और नमक कम खाने से भी बीपी लो हो सकता है. गर्मियों में ज्यादा पसीना आने से शरीर में पानी की कमी होती रहती है.
Blood Pressure in Summer : मौसम बदलने पर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. खासकर गर्मी के मौसम में समस्याएं ज्यादा बढ़ सकती हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि हमारी सेहत पर मौसम का काफी ज्यादा असर होता है. इससे कई बीमारियां बढ़ सकती हैं.
इन दिनों प्रचंड गर्मी पड़ रही है. कई जगहों का पारा 45 डिग्री के आसपास है. जिसका सबसे ज्यादा असर बीपी के मरीजों पर पड़ सकता है. उनका ब्लड प्रेशर कम हो सकता है. इस मौसम में बीपी के अचानक से ज्यादा नीचे आने का खतरा रहता है. जानिए गर्मी का मौसम बीपी पर कैसे असर डाल सकता है...
बीपी मरीजों पर गर्मी का असर
हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि सर्दियों में बीपी हाई होना का खतरा रहता है, जबकि गर्मी में ब्लड प्रेशर लो हो सकता है. दरअसल, ततापमान कम होने पर ब्लड वेसल्स सिकुड़ जाती हैं और ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है. जबकि गर्मियों में तापमान ज्यादा होने से खून की धमनियां फैलने लगती है और ब्लड प्रेशर लो होने लगता है. इसलिए बीपी के मरीजों को गर्मियों में खास सावधानी रखनी चाहिए. उन्हें रेगुलर तौर पर बीपी की मॉनिटरिंग करनी चाहिए.
गर्मी में ब्लड प्रेशर लो होने का कारण
डॉक्टर बताते हें कि गर्मियों में ब्लड प्रेशर लो होने के कई और फैक्टर्स हो सकते हैं. डिहाइड्रेशन और नमक कम खाने से भी बीपी लो हो सकता है. गर्मियों में ज्यादा पसीना आने से शरीर में पानी की कमी होती रहती है, ऐसे में अगर पर्याप्त पानी न पिया जाए तो डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती हैं. इससे ब्लड प्रेशर गिर सकती है.
इस मौसम में ज्यादा पसीना आने से शरीर में नमक कम होने लगता है जो ब्लड प्रेशर लो होने का कारण हो सकता है. क्योंकि नमक में बीपी मेंटेन रखने वाला सोडियम पाया जाता है, जिसकी कमी परेशानी बढ़ा सकता है.
गर्मी के मौसम में ब्लड प्रेशर कितना होना चाहिए
हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, एक वयस्क का नॉर्मल ब्लड प्रेशर 120/80 mm Hg होना चाहिए. मतलब सिस्टोलिक प्रेशर 120 या इससे कम और डायस्टोलिक प्रेशर 80 या इससे कम सामान्य माना जाता है. जब सिस्टोलिक प्रेशर 130-139 mm Hg तो इसे स्टेज 1 का हाइपरटेंशन माना जाता है, जबकि डायस्टोलिक प्रेशर 80-89 mm Hg होना स्टेज 1 हाइपरटेंशन में आता है. सिस्टोलिक प्रेशर 140 mm Hg और डायस्टोलिक प्रेशर 90 mm Hg या ज्यादा होने पर स्टेज 2 हाइपरटेंशन और इससे ज्यादा ब्लड प्रेशर हाइपरटेंसिव क्राइसिस कहलाता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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