Schizophrenia: प्रोटीन की इस ऑटो एंटीबॉडी से होता है सिजोफ्रेनिया, नई स्टडी में हुआ बड़ा खुलासा
सिजोफ्रेनिया से जूझने वाला इंसान काल्पनिक और वास्तविक चीजों को समझ नहीं पाता है, जिसकी वजह से उसके सोचने-समझने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है. इस मानसिक मसस्या में अक्सर भ्रम बना रहता है.
Schizophrenia : सिजोफ्रेनिया मेंटल हेल्थ से जुड़ी एक समस्या है. जिसमें इंसान अपनी कल्पनाओं को ही हकीकत मानने लगता है. वह हमेशा कंफ्यूज रहता है. सिजोफ्रेनिया आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था में होने वाली मानसिक समस्या है.
इसे लेकर टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च की है. हिरोकी शिवाकु के नेतृत्व में उनकी टीम ने पाया कि सिजोफ्रेनिया के कुछ मरीजों में एक ऑटोएंटीबॉडी होती है. यह एक प्रकार का प्रोटीन है, जो आमतौर पर वायरस या बैक्टीरिया के बजाय इम्यून सिस्टम से बनता है. मतलब ऑटोएंटीबॉडी सिज़ोफ्रेनिया जैसे व्यवहार और मस्तिष्क में परिवर्तन का कारण बनते हैं.
क्या है रिसर्च
सेल रिपोर्ट्स मेडिसिन में पब्लिश इस रिसर्च रिपोर्ट में एक ऐसे डिसऑर्डर के बारें में बताया गया है, जिसके कई अलग-अलग कारण और लक्षण होते हैं, जिसकी वजह से इलाज काफी मुश्किल हो जाता है. सिजोफ्रेनिया जेनेटिक, एनवायरमेंटल और बायोलॉजिकल फैक्टर्स से जुड़ी है. नया शोध बताया है कि मरीजों में ऑटोएंटीबॉडी डिसऑर्डर को बढ़ाने का काम कर सकता है.
खास प्रोटीन का दिमाग से कनेक्शन
रिसर्च टीम ने एक खास प्रोटीन पर फोकस किया, जिसे NCAM1 कहा जाता है. ये दिमाग की कोशिकाओं को सिनैप्स से कम्युनिकेट करने में मदद करता है. इसका विशेष कनेक्शन ही ब्रेन सेल्स को एक दूसरे तक सिंगल पहुंचाने की अनुमति देते हैं. पिछले अध्ययनों में भी संकेत दिया था कि NCAM1 सिज़ोफ्रेनिया में शामिल हो सकता है, इसलिए शोधकर्ताओं ने इस जांच के बाद फैसला लिया कि क्या इस प्रोटीन को टारगेट करने वाले ऑटोएंटीबॉडी डिसऑर्डर से जुड़े हो सकते हैं.
ब्रेन को कैसे प्रभावित करता है ऑटोएंटीबॉडीज
रिसर्च टीम ने 200 हेल्दी और 200 सिजोफ्रेनिया के मरीजों के ब्लड सैंपल की जांच की. उन्होंने पाया कि सिर्फ 12 मरीजों में ये विशेष ऑटोएंटीबॉडीज़ थीं, जिससे पता चलता है कि ये ऑटोएंटीबॉडी सामान्य नहीं हैं. सिजोफ्रेनिया मामलों के एक छोटे सब-ग्रुप में ये महत्वपूर्ण हो सकते हैं. ऑटोएंटीबॉडीज, ब्रेन को कैसे प्रभावित करती है, इसके लिए शोधकर्ताओं ने कुछ मरीजों से ऑटोएंटीबॉडी को शुद्ध कर उसे चूहों के ब्रेन में इंजेक्ट कर दिया. जिससे चूहे सिजोफ्रेनिया वाले लोगों की तरह की व्यवहार शुरू कर दिया, उनके दिमाग में भी बदलाव हुए. जिससे पता चला कि सिजोफ्रेनिया के कुछ मरीजों में इम्यून सिस्टम से गलती से ब्रेन पर हमला करने से जुड़ा हो सकता है.
सिजोफ्रेनिया का इलाज
इसका इलाज काफी लंबा चल सकता है.अगर शुरुआत में ही मरीज की समस्या पकड़ में आ जाए और मनोवैज्ञानिक थेरेपी से उसका इलाज किया जाए और उनकी फैमिली को भी काउंसलिंग दी जाए तो मरीज की कंडीशन को संभाला जा सकता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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