इंसानों की सेहत के लिए कितने खतरनाक होते हैं माइक्रोप्लास्टिक, नई रिसर्च में सामने आई चौंकाने वाली हकीकत
माइक्रोप्लास्टिक हवा, पानी से लेकर खाने पीने की चीजों में मिल चुके हैं और ह्यूमन बॉडी में पहुंचने लगे हैं. एक स्टडी के अनुसार पिछले 8 सालों में ह्यूमन ब्रेन में प्लास्टिक के टुकड़े पहुंच चुके हैं.
Effects of microplastics on health: कई दशकों से प्लास्टिक का तरह तरह से उपयोग किया जा रहा है और इसके खतरनाक रिजल्ट सामने आने लगे हैं. आजकल पौल्यूशन के कारणों में प्लास्टिक सबसे प्रमुख कारण बन चुका है. इससे मिट्टी से लेकर पानी तक में पौल्युशन बढ़ता जा रहा है. प्लास्टिक के बेहद छोटे-छोटे टुकड़ों को माइक्रोप्लास्टिक (Microplastics) कहते हैं.
इनका साइज 5 मिलीमीटर से कम या 1 नैनोमीटर तक हो सकता है. माइक्रोप्लास्टिक हवा, पानी से लेकर खाने पीने की चीजों में मिल चुके हैं और ह्यूमन बॉडी में पहुंचने लगे हैं. हाल ये हैं कि प्लास्टिक के कण ह्यूमन बॉडी के हर हिस्से में जमा हो रही है. ये ह्यूमन बॉडी के प्राइवेट पार्ट से लेकर ब्रेन तक मिल रहे है. हाल में हुए एक स्टडी के अनुसार पिछले 8 सालों में ह्यूमन ब्रेन में हद से ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े पहुंच चुके हैं.
वैज्ञानिकों के अनुसार लोगों के ब्रेन में करीब 0.5 पर्सेंट माइक्रोप्लास्टिक जमा हो चुकी है. ह्यूमन बॉडी में पहुंच रहे माइक्रोप्लास्टिक का सेहत (Health) पर काफी खतरनाक असर पड़ सकता है. आइए जानते हैं माइक्रोप्लास्टिक का सेहत पर असर (Effects of microplastics on health) और नई रिसर्च में क्या पता चला है...
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ब्रेन में जमा हो रहा है माइक्रोप्लास्टिक
सीएनएन में आई की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में रिसर्चस ने डेडबॉडी के परीक्षण में ह्यूमन ब्रेन के कई सैंपल लिए थे और फिर इसमें माइक्रोप्लास्टिक को लेकर रिसर्च की. इस रिसर्च में पता चला कि 8 साल पहले लिए गए सैंपल की तुलना में ह्यूमन ब्रेन में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा 50 प्रतिशत ज्यादाो चुके हैं. रिसर्च में शामिल वैज्ञानिकों का कहना है कि जिनकी औसत उम्र 45 या 50 वर्ष थी, उनके ब्रेन टिश्यूज में प्लास्टिक कंसंट्रेशन 4800 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम यानी वजन के हिसाब से 0.5% थी.
ब्रेन की समस्याओं का खतरा बढ़ा
अमेरिका की न्यू मैक्सिको यूनिर्वसटिी में फार्मास्युटिकल साइंस के रीजेंट प्रोफेसर और स्टडी के प्रमुख लेखक ऑथर मैथ्यू कैम्पेन के अनुसार वर्ष 2016 की तुलना में ब्रेन में बढ़ते प्लास्टिक की मात्रा से ब्रेन की समस्याओं का खतरा बढ़ गया है. हालांकि माइक्रोप्लास्टिक से होने वाले डैमेज पर रिसर्च करना अभी बाकी है. प्लास्टिक के कणों का ब्रेन सेल्स पर असर को समझने के लिए अब भी ज्यादा रिसर्च की जरूरत है. यह भी पता चला कि किडनी और लिवर की तुलना में ब्रेन में ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े जमा थे.
कहां कहां मिले माइक्रोप्लास्टिक
इस संबंध में अब तक हुए स्टडीज से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक ह्यूमन बॉडी में हार्ट, ब्लड स्ट्रीम, लंग्स, लिवर, प्राइवेट पार्ट से लेकर प्लेसेंटा तक में जमा हो रहे हैं. आज के जीवन मं प्लास्टिक से बचना मुश्किल है. स्मार्टफोन या कंप्यूटर से लेकर आम जरूरत की चीजों में प्लास्टिक होता है. हालांकि प्लास्टिक की थैलियां और बोतलों से बचा जा सकता है. रिचर्स में ब्रेन टिश्यूज के नमूने फ्रंटल कॉर्टेक्स से लिए गए थे. यह सोच और तर्क से जुड़ा हिस्सा होता है और डिमेंशिया और अल्जाइमर में सबसे अधिक प्रभावित होता है.
माइक्रोप्लास्टिक का सेहत पर असर
माइक्रोप्लास्टिक के ह्यूमन बॉडी के अंगों में जमा होने से सेल्स के डैमेज होने और सूजन का खतरा बढ़ जाता है. माइक्रोप्लास्टिक्स अंत:सावी कार्यों को बाधित कर सकता है, जिससे हार्मोनल इंबैलेंस हो सकता है. इनमें मौजूद कैमिकल्स कैंसर, प्रजनन संबंधी समस्याओं और विकास संबंधी समस्याओं का कारण बन सकते हैं. माइक्रोप्लास्टिक आंत में गड़बड़ी कर सकता है, पाचन और प्रतिरक्षा को खराब कर सकता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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