Microplastics Side Effcets : क्या आप जानते हैं कि फेस स्क्रब, शॉवर जैल और बॉडी स्क्रब जैसे कई पर्सनल प्रोडक्ट्स जिनका इस्तेमाल आप हर दिन करते हैं, उनमें माइक्रोप्लास्टिक्स (Microplastics) पाए जाते हैं. डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरमेंटल साइंस, कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (CUSAT) के रिसर्च में इसका खुलासा हुआ है.


बता दें कि माइक्रोप्लास्टिक सिर्फ पर्यावरण ही नहीं हमारी सेहत के लिए भी खतरनाक हैं. ये ब्रेन सेल्स को मारकर दिमाग को नुकसान पहुंचा सकता है. इसकी वजह से एलर्जी, थाइराइड, कैंसर जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. माइक्रोप्लास्टिक एंडोक्राइन सिस्टम को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे हार्मोनल प्रॉब्लम्स, महिलाओं में पीरियड्स, प्रजनन से जुड़ी समस्याएं और बांझपन का खतरा हो सकता है. 


रिसर्च में क्या पाया गया


रिसर्च टीम ने ऑनलाइन और ऑफलाइन तरीकों से खरीदे गए 45 नेशनल और इंटरनेशनल प्रोडक्ट्स से माइक्रोबीड्स निकाले. इसमें पाया कि भारत में मिलने वाले 49.12% प्रोड्क्ट्स में प्लास्टिक माइक्रोबीड्स थे. इनमें 18 फेस वॉश, 5 बॉडी स्क्रब, 12 फेस स्क्रब और 10 शॉवर जैल खरीदे गए.


ये सभी काफी पॉपुलर थे. रिसर्च टीम ने बतायाकि 45% प्रोडक्ट्स में अनियमित या चिकने माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए,  जिनमें पॉलीथीन, पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीस्टाइनिन, पॉलीयुरेथेन और पॉलीकैप्रोलैक्टोन थे.


माइक्रोप्लास्टिक क्या होते हैं


एक्सपर्ट्स के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक 5 मिलीमीटर या इससे छोटे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं. हम जिन प्रोड्क्ट्स का इस्तेमाल अपनी रोजाना की जिंदगी में करते हैं, उनमें पाए जाते हैं. कॉस्मेटिक और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स के अलावा कपड़े, सिगरेट, कुछ तरह के फूड्स और प्लास्टिक की बोतल के पानी में भी माइक्रोप्लास्टिक पाए जाते हैं.


अमेरिका के प्लास्टिक ओशन NGO के मुताबिक, हर व्यक्ति हर हफ्ते औसतन माइक्रोप्लास्टिक के 1769 कण सिर्फ पीने से ही ले लेता है.वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फेडरेशन 2019 की रिपोर्ट में भी बताया गया कि हर हफ्ते करीब 2,000 छोटे कण खाने या सांस से शरीर में पहुंच सकते हैं.


माइक्रोप्लास्टिक हमारे लिए क्यों खतरनाक


1. शरीर में ज्यादा मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक जमा होने से कई अंग डैमेज हो सकते हैं. इससे सबसे ज्यादा लीवर और किडनी जैसे अंग प्रभावित हो सकते हैं.


2. शरीर में पहुंचकर माइक्रोप्लास्टिक इम्यून सिस्टम को ट्रिगर कर सकते हैं. इनकी वजह से ऑटोइम्यून बीमारियां और कई तरह के डिसऑर्डर बढ़ सकते हैं.


3. माइक्रोप्लास्टिक शरीर में इंफ्लेमेशन प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर पुरानी सूजन को बढ़ा सकते हैं, जिससे हार्ट डिजीज, गठिया का दर्द, न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर हो सकते हैं.


4. माइक्रोप्लास्टिक्स पर्यावरण से हानिकारक केमिकल्स अवशोषित कर सकते हैं. जब ये केमिकल शरीर के अंदर पहुंचते हैं तो सामान्य सेलुलर काम को बाधित कर शरीर में जहर बना सकते हैं.


5. कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि प्लास्टिक में पाए जाने वाले फेथलेट्स और बिस्फेनॉल ए जैसे केमिकल्स हार्मोंस को प्रभावित कर सकते हैं. इससे कैंसर, प्रजनन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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