Multiple Personality Disorder: अक्षय कुमार की फिल्म 'भूल-भुलैया' तो आपने देखी ही होगी. अवनी चर्तुवेदी का रोल प्ले करने वाली विद्या बालन के अंदर अवनी और मंजुलिका दोनों ही रहते हैं. मेडिकल टर्म में इस स्थिति को डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर (DID) यानी मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर (Multiple Personality Disorder) कहा जाता है. जब एक ही इंसान के अंदर कई इंसान रहने लगे तो इसे मल्टिपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर कहते हैं. हमारे देश में अक्सर इसे भूत-प्रेत का वास समझा जाता है लेकिन यह एक मानसिक बीमारी होती है. आइए जानते हैं इस बीमारी के कारण, लक्षण और इलाज..

डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर के लक्षण 


मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर कब किसी व्यक्ति को अपना शिकार बना लेती है, इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल होता है. इस समस्या में व्यक्ति में फिजिकली किसी तरह का बदलाव या लक्षण दिखाई नहीं देता है. उनका मेंटली बिहैवियर भी बिल्कुल सामान्य होता है. हेल्थ एक्सपर्ट ने इस बीमारी के कुछ लक्षणों की पहचान की है, जिससे पता लगाया जा सकता है कि कोई इंसान मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का शिकात तो नहीं है.

 

1. समय का पता न चलना

2. मन में हमेशा उलझन या भ्रम बना रहना

3. मेमोरी कमजोर होना

4. रेगुलर बिहैवियर से अलग बिहैव करना

5. एक से ज्यादा पर्सनॉलिटी को दिखाना

6. डिटैचमेंट की भावना

मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का कारण


बचपन में किसी तरह के अनुभव की वजह से ज्यादातर लोगों में यह समस्या देखी जाती है. एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर किसी बच्चे के साथ बचपन में मानसिक तनाव, यौन उत्पीड़न और मारपीट जैसा कुछ हुआ है, तो आगे चलकर उसमें मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर की आशंका ज्यादा होती है. यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकता है. इस समस्या में अपनी रियल लाइफ से अलग होकर दूसरी पर्सनॉलिटी में रहना शांत और सुखी रहने का उपाय नजर आता है. हालांकि अगर कोई लंबे समय तक इस स्थिति में रहता है तो इसके गंभीर नुकसान भी हो सकते हैं.

मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का इलाज 


साइकोलॉजिस्ट मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का इलाज करते हैं. टॉकिंग थेरपी’ की हेल्प से इस समस्या की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की जाती है और इसी से इसका इलाज किया होता है. इस सेशन में समस्या से परेशान व्यक्ति का इलाज इस तरह से किया जाता है..

 


  • उसकी स्थिति के बारे में उसे बताया जाता है.

  •  मेंटली तौर पर अलग-अलग इमोशन सहने की कैपसिटी बढ़ाई जाती है.

  •  इम्पल्सिव नेचर को कंट्रोल करने पर काम किया जाता है.

  •  ऐसा काम जिससे फ्यूचर में फिर से  डिटैचमेंट की भावना न आए.

  • टाइम और स्ट्रेस मैनेजमेंट पर फोकस.

  • रिश्तों में सुधार करने की सीख देना.

  • . मरीज का कॉन्फिडेंस और भरोसा बढ़ाया जाता है.


 

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