Post Stroke Depression : स्ट्रोक काफी खतरनाक होता है. कई बार यह जानलेवा भी हो सकता है. स्ट्रोक सिर्फ शरीर ही नहीं बल्कि दिमाग को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. स्ट्रोक के बाद कई मरीजों में डिप्रेशन (Post Stroke Depression) की समस्या देखी गई है, जिसे डॉक्टर गंभीर गंभीर मानते हैं. इसलिए समय-समय पर इसका जांच करवाने की सलाह देते हैं. आइए जानते हैं पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन आखिर क्या होता है और इसका इलाज क्या है...

 

पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन का कारण

स्ट्रोक के बाद डिप्रेशन में चले जाने को ही पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन कहते हैं. इसके एक नहीं कई कारण बताए गए हैं. इनमें स्ट्रोक की जगह, जेनेटिक, सामाजिक सपोर्ट और पर्सनलालिटी फैक्टर्स शामिल हैं. पैरालिसिस की अचानक शुरुआत इमोशनली ट्रिगर कर सकती है. ब्रेन की चोट और न्यूरोकेमिकल चेंजेस मूड स्विंग का कारण बन सकते हैं. स्ट्रोक के बाद जो स्ट्रोक होता है, वह डेली रुटीन को भी प्रभावित कर सकता है. इसकी वजह परिवार में किसी को पहले इस तरह की समस्या होना या स्ट्रोक से पहले डिप्रेशन में रहना हो सकता है.

 

पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन के लक्षण

हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अस्पताल में भर्ती मरीजों में पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन के कुछ लक्षण स्ट्रोक की तरह ही देखे गए. इनमें वजन कम होना, थकान और सोने के पैटर्न में बदलाव शामिल हैं. अन्य लक्षणों में डिस्फोरिया, एनहेडोनिया, किसी चीज को लेकर पछतावा, मन का एकाग्र न होना, किसी भी फैसले को लेने में समस्या होना, सुसाइड करने का ख्याल आना भी है. स्ट्रोक के करीब 30% मरीजों में बोलने में दिक्कत होती है, जो स्ट्रोक के मरीजों में डिप्रेशन का कारण हो सकता है.

 

पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन में क्या बदलाव आते हैं

हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन में मरीज उदास रहता है, किसी काम में उसका मन नहीं लगता है, उसे कोई भी काम अच्छा नहीं लगता है. 2014 के एक अध्ययन में स्ट्रोक के बाद डिप्रेशन होने का खतरा 31% तक देखा गया है.

 

पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन का इलाज

हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, स्ट्रोक के बाद के  डिप्रेशन का इलाज बायोलॉजिकल, साइकोलॉजिकल, सोशल और रिहैबिलिटेशन पर बेस्ड होना चाहिए. कुछ अध्ययनों ने स्ट्रोक के मरीजों में डिप्रेशन के इलाज के लिए थेरेपी को भी कारगर माना गया है. बिहैवियर एक्टिवेशन थेरेपी इसमें सबसे अच्छा माना गया है, जो जीवन के खुशनुमा पलों पर आधारित है. इसमें कुछ पॉजिटिव अप्रोच दिखाए जाते हैं. मरीज में अपनापन बढ़ाने की कोशिश की जाती है. उन्हें साइकोलॉजिकल तौर पर मजबूत बनाया जाता है. शोधकर्ताओं का मानना है कि जीवन में कुछ पल इतने अच्छे होते हैं कि जिनकी मदद से डिप्रेशन को कम किया जा सकता है.  इसके साथ ही मस्तिष्क उत्तेजना के तौर-तरीके, RTMS (Repetitive Transcranial Magnetic Stimulation) और दूसरों के बीच TDCS (Transcranial Direct Current Stimulation) को भी पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन में प्रभावी माना गया है.

 

पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन की दवाईयां

इसके साथ-साथ मनोचिकित्सक पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन के इलाज के लिए एंटी-डिप्रेशंट्स दवाईयों का भी इस्तेमाल करते हैं. ये दवाईयां भी काफी कारगर मानी जाती हैं. हालांकि, इसमें मरीज की नियमित तौर पर निगरानी भी की जानी चाहिए. हेल्थ एक्सपर्ट्स से सलाह के बाद ही इनका सेवन करना चाहिए. 

 

पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन की चुनौतियां

हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर पोस्ट स्ट्रोक डिप्रेशन के मरीज का इलाज न किया जाए तो उनकी लाइफ क्वालिटी बेहद खराब हो सकती है. इससे उनका पूरा जीवन भी बर्बाद हो सकता है. इसलिए सही समय पर उचित इलाज करवाना चाहिए, ताकि मरीज को किसी तरह की कोई दिक्कत भविष्य में न आए.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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