Monkeypox Myths : 20 से ज्यादा देशों में फैल चुके मंकीपॉक्स को WHO ने ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है. भारत में भी इस संक्रमण की एंट्री हो चुकी है. 2022 के बाद यह दूसरी बीमारी है, जिसे आपातकाल बताया गया है. अफ्रीका में मंकीपॉक्स वायरस के तेजी से बढ़ने के कारण यह फैसला लिया गया है.


अफ्रीका में इस साल मंकीपॉक्स के करीब 30,000 केस आए हैं, जिनमें से 600 लोगों की मौत भी हो गई है. इन सबके बीच एक बार फिर से सोशल मीडिया और इंटरनेट पर मंकीपॉक्स संक्रमण को लेकर कई तरह की अफवाहें चल रही हैं. जिनसे बचने के लिए मंकीपॉक्स की सही जानकारी और इससे जुड़े मिथ को समझने की जरूरत है.


Myth : मंकीपॉक्स से जान चली जाती है


Fact : मंकीपॉक्स संक्रमण को लेकर कई अफवाहें हैं. इनमें से एक ये भी है कि एक बार इस संक्रमण की चपेट में आने के बाद बचना मुश्किल हो जाता है लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स इससे इनकार करते हैं. यूएस सीडीसी के मुताबिक, मंकीपॉक्स से संक्रमित होने वाले 99% लोगों में ठीक होने और लंबे समय तक जिंदा रहने की संभावना रहती है. 


Myth : मंकीपॉक्स सिर्फ गे और बाई सेक्सुअल को ही होता है


Fact : यह पूरी तरह गलत बात है. WHO एक्सपर्ट एंडी सील का कहना है कि सोशल मीडिया पर कई लोगों ने यह बताया कि मंकीपॉक्स सिर्फ गे की समस्या नहीं है. यह किसी को भी हो सकती है. अगर कोई दो व्यक्ति एक-दूसरे के नजदीक हैं या फिजिकल कॉन्टैक्ट बनाते हैं तो इसकी आशंका ज्यादा होती है. अगर कोई दो पुरुष बिना प्रोटेक्शन इंटरकोर्स करते हैं, तो उनमें इंफेक्शन का खतरा काफी ज्यादा रहता है. यह संक्रमण हेट्रोसेक्सुअल में भी देखा गया है.


Myth : एक बार मंकीपॉक्स हो जाए तो इलाज नहीं होता है


Fact : मंकीपॉक्स वायरस एक सीमित समय के लिए ही प्रभावित कर सकता है. 2 से 4 हफ्ते में यह अपने आप ही ठीक हो जाता है. इस समय इसका इलाज करवाना जरूरीहोता है. इसलिए यह कहना कि यह लाइलाज बीमारी है, पूरी तरह गलत है.


Myth : जिंदगी में सिर्फ एक ही बार होता है मंकीपॉक्स?


Fact :  विशेषज्ञों का मानना ​​है कि संक्रमित होने या वैक्सीन लगवाने के बाद मंकीपॉक्स से दोबारा संक्रमित होने की आशंका नहीं होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथर्न कैलिफोर्निया के केक स्कूल ऑफ मेडिसिन में माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी की प्रोफेसर पाउला कैनन का कहना है कि ज्यादातर वायरल बीमारियों में यही होता है.


वायरस जैसे खसरा, एपस्टीन धीरे-धीरे म्यूटेड होते हैं, एक मजबूत इम्यूनिटी बनाते हैं, जो संक्रमण के बाद लाइफटाइम बनी रहती है. इससे शरीर वायरस को पहचानना सीखता है और उनसे दोबारा से लड़ने के तरीके जान लेता है, जिससे शरीर में नहीं आने देता है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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