धैर्य, त्याग, करुणा, प्रेम, निष्टा इतने सारे शब्दों को अगर किसी एक शब्द में समाहित करना है तो 'मां' से बेहतर शब्द कुछ और नहीं होगा. 'मातृत्व' अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है जिसे हमें कुछ शब्दों या आर्टिकल के जरिए बयां नहीं कर सकते हैं. 'मातृत्व' का दर्जा ही सर्वोपरी है यही कारण है कि एक महिला की जिंदगी का सबसे सुखद एहसास या क्षण वह होता है जब वह अपने कोख से एक बच्चे को जन्म देती है. या यूं कहें कि जब वह अपने बच्चे को गोद में पहली बार लेती है. लेकिन कुछ महिलाएं ऐसी हैं जो इस सुख को प्राप्त करने के लिए पूरी जिंदगी तरसती रह जाती हैं. आखिर क्या है इसके पीछे की वजह...आइए जानते हैं.


'नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के दूसरे चरण' की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की फर्टिलिटी रेट में पहले के मुकाबले काफी ज्यादा गिरावट आई है. एक महिला की बच्चों को जन्म देने की औसत संख्या 2.2 से घटकर सीधा 2.0 पर आ गई है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि रिपोर्ट देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि देश की जनसंख्या स्थिर हो रही है. 2.1 टोटल फर्टिलिटी रेट को प्रतिस्थापन दर के तौर पर देख सकते हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019-2021) के आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट जारी किया गया है. कुछ महीने बाद, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने एक प्रेस बयान जारी कर इस खबर की पुष्टि की.


बढ़ती उम्र में शादी और बच्चा


आजकल के मॉर्डन लाइफस्टाइल में लड़के हो या लड़कियां 25 या 30 की उम्र के बाद ही शादी करते हैं. हर कोई चाहता है कि वह अपना करियर पहले सेट कर लें उसके बाद ही वह शादी या बच्चा करे. वहीं दूसरी तरफ बढ़ती उम्र के कारण गर्भधारण करने में कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है. आजकल तो फिर भी लोग आईवीएफ (IVF) की मदद से माता-पिता का सुख प्राप्त कर ले रहे हैं लेकिन नैचुरल तरीके से कंसीव करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. मेडिकल साइंस के मुताबिक महिलाओं में प्रजनन का एक सही उम्र 15 से 49 साल तक ही होती है. वहीं आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कोई भी महिला अपने 25 से 29 साल की आयु तक कि प्रजनन क्षमता अपने चरम पर होती है और इसके बाद घटने लगती है.  ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों लगातार भारत का फर्टिलिटी रेट गिरता जा रहा है. हेल्थ एक्सपर्ट से लेकर डॉक्टर तक इस सवाल पर अपनी बात रख रहे हैं. लेकिन एक चीज जो सभी के बातों में कॉमन दिखाई दी है. वह यह कि मॉर्डन लाइफस्टाल, खराब खानपान और जलवायु परिवर्तन, हिट वेव. 


प्रजनन क्षमता में गिरावट का एक कारण हिट वेव भी है क्या?


'क्या चिलचिलाती गर्मी या यूं कहें कि हिट वेव महिला या लड़की की प्रजनन क्षमता पर असर डाल रही है' आज के समय में यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है.  हिट वेव और प्रदूषण के कारण ही तो नहीं लड़कियों के पीरियड्स में अनियमितता या प्रजनन क्षमता में कमी आ रही है. ग्लोबल वार्मिंग और भारत में हो रहें लगातार जलवायु परिवर्तन के कारण यहां के निवासी कई सारी ऐसी समस्याओं को सामना कर रहे हैं.  जिसे हम यह सोचकर झेल जाते हैं कि कुछ दिनों की दिक्कत है फिर ठीक हो जाएगी. लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह भीषण गर्मी का असर सिर्फ बच्चे और बूढ़े पर नहीं होता है बल्कि यह महिला के रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर भी खतरनाक असर डाल रहा है. साथ ही साथ यह धीरे-धीरे बीमारी कर दे रहा है. 


अधिकतर लोग डिहाइड्रेशन की समस्या से जूझ रहे हैं


भीषण गर्मी के कारण ज्यादातर लोग डिहाइड्रेशन की समस्या से जूझ रहे हैं. इसके अलावा यह महिला के प्रजनन क्षमता को काफी हद तक प्रभावित कर रहा है. जिसकी वजह से आज के टाइम से ज्यादातर दंपती बच्चे का सुख प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं. अत्यधिक गर्मी के कारण कई तरह का मानसिक विकार उत्पन्न हो रहे हैं. जैसे गर्मी तनाव, चिंता और नींद की गड़बड़ी का कारण बनती है, जो महिलाओं के लिए परेशान करने वाली हो सकती है. इसलिए खुद के हेल्थ के लिए काफी ज्यादा सतर्क रहें. 


खासकर औरतें सेहत को लेकर रहें सतर्क


ओव्यूलेशन की समस्याएं:


हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक शारीरिक रूप से कमजोर महिलाओं को गर्मी में अपना खास ख्याल रखना चाहिए. क्योंकि डॉक्टर्स का दावा है कि गर्मियों में महिलाओं की गुणवत्ता कम हो जाती है साथ ही उन्हें ओवुलेशन की दिक्कतों से गुजरना पड़ता है. गर्मी के कारण गर्भावस्था में भी कई तरह कि जटिलताएं होती हैं.


रिप्रोडक्टिव हेल्थ के लिए है खतरनाक


हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक ज्यादा गर्मी पड़ने से इसका सीधा असर महिलाओं के प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है. चिलचिलाती गर्मी के कारण ही महिलाओं या लड़कियों को पीरियड्स में अनियमितता, बांझपन और एंडोमेट्रियोसिस के लक्षण देखने को मिल रहे हैं. 


गर्भावस्था से संबंधित जटिलताएं


गर्मी के कारण गर्भवती महिलाओं को  मधुमेह, प्रीक्लेम्पसिया और दूसरी तरह की समस्याएं हो सकती हैं जो महिला और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकती हैं.


हिट वेव के कारण हार्मोनल चेंजेज भी हो सकते हैं


गर्मी के तनाव से शरीर में हार्मोनल संतुलन में परिवर्तन हो सकता है और पीरियड्स में भी कई तरह की दिक्कतें पैदा हो सकती हैं. 


प्रीक्लेम्पसिया


इसके अलावा, कुछ महिलाओं में समय से पहले प्रसव और प्रसव, प्रीक्लेम्पसिया की समस्याएं भी हो सकती है. साथ ही साथ हेवी फ्लो, पेट में दर्द जैसी समस्याएं भी गर्मी के कारण हो सकती है. 


हीटवेव से निपटना है तो इन टिप्स को फॉलो कर सकते हैं


हीट वेव से निपटना है तो आपको ढे़र सारा पानी पीना चाहिए. ताकि आप भीषण गर्मी को भी लंबे समय तक बर्दाश्त कर पाएं. जैसा कि आपको पता है जब गर्मी बढ़ती है शरीर अपने हिसाब से रिएक्शन देने लगता है. 


तंग कपड़ों के बजाय ढीले और सूती कपड़े पहनें. सुबह जल्दी उठकर व्यायाम करें जब बाहर का मौसम गर्म न हो. ब्रेकफास्ट में पौष्टिक आहार लें जो आपके शरीर के सभी पोषक प्रदान करें. 


यदि आप धूप में बाहर निकल रहे हैं तो टोपी, टोपी, छाता या स्कार्फ का प्रयोग करें.


डॉक्टर के बताए अनुसार ही सनस्क्रीन लगाएं. जंक, ऑयली, मसालेदार, डिब्बाबंद और प्रोसेस्ड फूड खाने से बचें. 


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