Hikikomori In Japan: जीवन के उतार-चढ़ाव और कठिन परिस्थितियों से परेशान लोग अक्सर अकेलेपन में रहना पसंद करते हैं. ये समस्या तब और ज्यादा बढ़ जाती है जब ऐसे लोगों की संख्या अधिक हो जाए. कोरोना महामारी ने इस परेशानी को तेजी से बढ़ाने का काम किया है. क्योंकि लॉकडाउन के चलते पूरी दुनिया घर की चारदीवारी में कैद हो गई थी. इन दिनों एक देश की सरकार के लिए अकेलेपन की समस्या चिंता का सबब बनी हुई है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जापान में 15 लाख से ज्यादा कामकाजी उम्र के लोग घरों में कैद हैं. ये लोग न तो घर से निकलते हैं और ना ही लोगों से मिलना पसंद करते हैं. 


जापान में समाज से खुद को अलग करने और अकेले रहने की इस प्रक्रिया को 'हिकिकोमोरी' कहा जाता है. इसका ट्रेंड जापान में बढ़ता जा रहा है. हिकिकोमोरी से पीड़ित लोग किसी से बातचीत करना या जुड़ना पसंद नहीं करते. उन्हें सिर्फ घर में रहना पसंद होता है. 10 से 69 साल की उम्र के 30,000 जापानी लोगों पर किए गए एक सर्वे के मुताबिक, 15-62 एज-ग्रुप के 2 पर्सेंट व्यक्ति हिकिकोमोरी से पीड़ित हैं.


क्या है हिकिकोमोरी?


माना जाता है कि 'हिकिकोमोरी' शब्द जापान में 1990 के दशक में उन युवाओं के लिए गढ़ा गया था, जिन्होंने समाज से खुद को काट लिया था और अपने घरों में आइसोलेट हो गए थे. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका की मानें तो उस व्यक्ति को हिकिकोमोरी माना जाता है, जो 6 महीने या इससे लंबे समय तक समाज से दूरी बनाए रखते हैं या उनसे कटे रहते हैं. हिकिकोमोरी को टेंशन, डिप्रेशन, पढ़ाई का दबाव, रिश्तों में कलह और सामाजिक भय आदि से जोड़ा जाता है. 


जापान में क्यों बढ़ रहा 'हिकिकोमोरी' का ट्रेंड?


जापान में हिकिकोमोरी का ट्रेंड कई वजहों से बढ़ रहा है. जापान में कई युवा स्कूल में अच्छा प्रदर्शन करने और अच्छी नौकरियों के लिए ज्यादा पढ़ाई के दबाव का सामन करते हैं. इससे उनमें तनाव और चिंता जैसी दिक्कतें पैदा होती हैं. इसके अलावा, करियर ग्रोथ की टेंशन, कुछ न कर पाने का दबाव भी इसके बढ़ने के कारणों में शामिल है. हिकिकोमोरी का इलाज आमतौर पर दवा से नहीं होता, बल्कि साइकोथेरेपी से किया जाता है. हालांकि मेंटल हेल्थ में सुधार करने के लिए दवाइयों की जरूरत भी पड़ती है. हिकिकोमोरी से जूझने वाले लोगों को परिवार के सपोर्ट की या मेडिकल प्रोफेशनल की जरूरत पड़ती है. 


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