नई दिल्ली: होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है. यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है. पहले दिन को होलिका जलायी जाती है जिसे होलिका दहन भी कहते है. दूसरे दिन को धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है. इस दिन एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल फेंकते हैं. वसंत ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है. होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है. इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं
होली पर भांग पीने की परंपरा है. भांग पीना शास्त्रीय परंपरा नहीं है. भांग नशा है. होली उत्साह और उमंग का पर्व है इसमें नशा का कोई स्थान नहीं है. होली के दिन भांग और शराब से दूर रहें. प्राचीन काल में होली को विवाहित महिलाएं परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाती थीं. होली के दिन पूर्ण चंद्रमा की पूजा करने की परंपरा थी. वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था. प्राचीन समय में खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान था. अधपके अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा.
आर्यों में भी होली पर्व का प्रचलन था. होली अधिकतर पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था. होली का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है. जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र, नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे ग्रंथों में भी होली का उल्लेख मिलता है. प्राचीन समय में होली को रंगोत्सव कहा जाता था. विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ में स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली का उल्लेख है. संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव कवियों के प्रिय विषय रहे हैं.