नई दिल्लीः होली का त्यौहार हर साल देशभर में दो दिनों के लिए मनाया जाता है. पहले दिन होलिका पूजन होता है और दूसरे दिन रंगोत्सव मनाया जाता है. देशभर में होली की जोर-शोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं. बरसाना में लट्ठमार होली का आयोजन भी आज से शुरू हो गया है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि 2018 में होली पूजन का शुभ मुहूर्त क्या है. होली पूजन कैसे करें और होलिका दहन के वक्त क्या सावधानियां बरतें.
होलिका दहन-
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. इस दिन को छोटी होली भी कहा जाता है. इस साल 1 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा और 2 मार्च को रंगों से होली खेली जाएगी.
कब करें होलिका दहन-
ऐसा माना जाता है कि भद्रा काल में होलिका दहन नहीं होना चाहिए इसे अशुभ माना जाता है. ये भी कहा जाता है कि होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि में ही होना चाहिए. इस साल 1 मार्च को शाम 7 बजकर 47 मिनट से भद्रा काल समाप्त हो रहा है. वहीं पूर्णिमा तिथि 1 मार्च को 8 बजकर मिनट पर शुरू हो रही है. अधिक लाभ के लिए पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन करें. अन्यथा भद्रा काल की समाप्ति पर भी होलिका दहन किया जा सकता है.
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, होलिका दहन उस समय सबसे शुभ माना जाता है जब पूर्णिमा तिथि हो, प्रदोष काल हो और भद्रा काल समाप्त हो गया हो. संयोग से इस इस बार ये तीनों चीजें एक साथ हो रही हैं. यानि इस बार होलिका दहन का मुहूर्त बहुत शुभ है.
होलिका दहन का महत्व-
धुलण्डी यानि रंगोंत्साव से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन अच्छाई की जीत का प्रतीक है. होलिका दहन के पीछे भी एक पुराणिक कथा प्रचलित है. कथानुसार, प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था. अपने बल के दम पर वह खुद को ही ईश्वर मानने लगा था. उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था. प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे. आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया. ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है.
होलिका पूजन की सामग्री-
कई जगहों पर होलिका की पूजा के लिए होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. इसके अलावा पूजा सामग्री में रोली, फूलों की माला और फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, मूंग, नारियल, पांच या सात तरह के व्यंजन, फसलों की बालियां, जौ या गेहूं और साथ में एक लोटा पानी रखा जाता है. इसके साथ ही मिठाईयां, फल आदि भी पूजा के दौरान चढ़ाए जाते हैं.
कैसे की जाती है होलिका की पूजा-
कई मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन से पहले होलिका की विधिवत पूजा की जाती है. पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करना चाहिए. होलिका की पूजा के दौरान होलिका के चारों ओर सात परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत होलिका पर बांधा जाता है. हर परिक्रमा पर पूजा सामग्री चढ़ाई जाती और जल दिया जाता है. सातवीं परिक्रमा पर सारी पूजा सामग्री होलिका को अर्पित की जाती है और फिर जल दिया जाता है. महिलाएं इस दिन व्रत करती हैं. होलिका पूजन दिन के समय यानि 4 बजे से पहले कर लिया जाता है.
क्यों भूने जाते हैं जौ-
उत्तर भारत में खासतौर पर होलिका दहन के दौरान जौ को आग में भूनने का चलन है. लोग जौ भूनकर अपने परिवार और आसपास के लोगों को बांटते हैं. लोग जौ भूनकर अपने जीवन में सुख और शांति की प्रार्थना करते हैं. ऐसा माना जाता है कि आग में जौ जलाने से जीवन की सभी समस्याएं नष्ट हो जाती है और जिंदगी में पॉजिटिव एनर्जी आती है. होलिका दहन के बाद सभी को तिलक लगाकर प्रसाद दिया जाता है.
होलिका की राख-
मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन के बाद इसकी राख को घर के चारों ओर छिड़कने घर में नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है.
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